कलकत्ता हाई कोर्ट (Calcutta High Court) ने 28 फरवरी, 2023 को बच्चे की कस्टडी के एक मामले की सुनवाई के दौरान अपने आदेश में एक 13 वर्षीय लड़के को माता-पिता में से किसी एक को चुनने की अनुमति दी थी, जिसके साथ वह रहना चाहता है। हाई कोर्ट ने कहा कि युवा लड़का “बुद्धिमान और पर्याप्त परिपक्व” है, ताकि मामले को अपने दम पर तय कर सके। बेटे ने आखिरकार अपने पिता के साथ जाना चुना।
क्या है पूरा मामला?
कपल ने 2008 में शादी की थी और 2010 में उनका एक बेटा पैदा हुआ। वर्ष 2017 में शादी टूट गई, जिसके बाद पत्नी बच्चे को लेकर ससुराल चली गई और पति के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराया। इस बीच, कपल एक कड़वी चाइल्ड कस्टडी की लड़ाई में उलझ गए, जो पिछले छह वर्षों से चली आ रही है। पिता बालुरघाट स्थित स्कूल टीचर हैं, जबकि मां मालदा स्थित शिक्षाविद हैं। पति, उसके माता-पिता और भाई जमानत पर बाहर हैं लेकिन पत्नी द्वारा उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। कपल तलाक की कार्यवाही में भी उलझे हुए हैं।
पिता का आरोप
अलग रह रहे पति ने हाई कोर्ट को सूचित किया कि उसकी पत्नी ने पिछले छह वर्षों में उसे अपने बेटे से मिलने की अनुमति नहीं दी थी।
मां का तर्क
दूसरी ओर पत्नी ने तर्क दिया कि बच्चे के दादा एक रिटायर्ड स्कूल क्लर्क हैं, जबकि उनकी दादी (दादी) एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थीं। इस प्रकार वे अपने नाना-नानी से बेहतर बच्चे का लालन-पालन नहीं कर सकती थीं, जो स्कूल के प्रिंसिपल हैं।
कलकत्ता हाई कोर्ट
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस उदय कुमार की खंडपीठ ने पहले तो शादी को बचाने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद अदालत ने संयुक्त पालन-पोषण का भी प्रस्ताव रखा, जो विफल रहा। अदालत फिर युवा लड़के की ओर मुड़ी और उससे पूछा कि वह क्या चाहता है। जिस पर बच्चे ने कहा कि वह अपने पिता के घर रहना चाहता है।
यह देखते हुए कि बच्चा बुद्धिमान और परिपक्व था, हाई कोर्ट ने कहा कि बच्चा बुद्धिमान है और इतना परिपक्व है कि वह अपनी अभिरक्षा का निर्णय ले सके। वह अपनी कस्टडी के संबंध में एक बुद्धिमान वरीयता बनाने में सक्षम है। बच्चे ने हमें बताया था कि वह अपने पिता के यहां, दादा-दादी और चाचाओं के संयुक्त परिवार में बहुत खुश था। मालदा में अपनी मां के यहां स्कूल से घर आने के बाद उन्हें अकेलापन महसूस हुआ।
बेंच ने आगे कहा कि अदालत को माता-पिता के बीच इस तरह की कड़वाहट का असर बच्चे पर नहीं पड़ने देना चाहिए। इसने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि कस्टडी की लड़ाई में पार्टियों के कानूनी अधिकारों पर नाबालिग बच्चे का कल्याण होगा।
मामले पर आगे टिप्पणी करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि अदालत न तो कानूनों से बंधी है और न ही साक्ष्य के सख्त नियमों से और न ही प्रक्रिया या मिसाल से। कस्टडी के मुद्दे पर निर्णय लेने में सर्वोपरि विचार बच्चे के कल्याण और भलाई का होना चाहिए।
पिता द्वारा #ParentalAlienation के आरोपों पर हाई कोर्ट ने कहा कि बच्चे को पिता से अलग करने के लिए किसी भी अवांछित स्थिति के निर्माण को केवल इसलिए माफ या प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि आवेदक बच्चे की मां है।
पिता को दी कस्टडी
इसके साथ ही कोर्ट ने बेटे को अपने पिता के पास लौटने की इजाजत दे दी। वहीं, मां को महीने में दो बार मुलाक़ात का अधिकार दिया गया और वीकेंड में बच्चे के साथ फोन या वीडियो कॉल पर बातचीत करने की अनुमति दी गई। साथ ही प्रति वर्ष एक महीने की कस्टडी रखने की अनुमति दी गई।
‘वॉयस फॉर मेन इंडिया’ हमेशा बच्चे के सर्वोत्तम हित के पक्ष में रहा है। हम दृढ़ता से प्रस्ताव करते हैं कि भारत जल्द ही एक शेयर्ड पेरेंटिंग अवधारणा (कानून) को अपनाए, जहां माता-पिता दोनों बच्चे को पालने के लिए सह-भागीदार हो सकते हैं। अपने ही बच्चों से माता या पिता को अलग करना सबसे अमानवीय कृत्यों में से एक है, जिसे सख्ती से हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
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