मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने हाल ही में एक अहम फैसले में कहा कि एक मां अपनी मृत बेटी की संपत्ति की कानूनी उत्तराधिकारी होती है। इसलिए वह बेटी के भरण-पोषण के बकाए का दावा करने की हकदार होती है। लाइव लॉ के मुताबिक, हाईकोर्ट ने कहा कि एक मां अपनी मृत बेटी को उसकी निधन से पहले मिलने वाले भरण-पोषण के बकाए का दावा करने की हकदार है। अदालत ने कहा कि भरण-पोषण का बकाया मृत बेटी की संपत्ति थी और उसकी मौत के बाद कानूनी अभिभावक होने के नाते उसकी मां इस संपत्ति की हकदार है।
क्या है पूरा मामला?
रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ता अन्नादुरई (Annadurai) ने 1991 में सरस्वती से शादी की थी। इसके कुछ समय बाद कपल अलग हो गए और अन्नादुरई ने हिंदू मैरिए एक्ट के तहत तलाक की याचिका दायर की। कपल के तलाक के बाद पत्नी सरस्वती ने भरण-पोषण के लिए मजिस्ट्रेट अदालत में याचिका दायर की। इस पर कोर्ट ने उसे 7500 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया, जिसका भुगतान याचिका दायर करने की तारीख से किया जाना था।
भरण-पोषण के बकाया की वसूली के लिए सरस्वती ने 6,37,500 रुपये के बकाए का दावा करते हुए एक अन्य आवेदन दायर किया। हालांकि, लंबित आवेदन के दौरान उसका निधन हो गया। इसके बाद मृत महिला की मां जया ने उसे याचिकाकर्ता के रूप में शामिल करने और बकाया राशि वसूल करने की अनुमति देने के लिए एक याचिका दायर की। इस आवेदन को अनुमति दी गई थी और यह अदालत के समक्ष समीक्षा में थी।
पति का तर्क
पति ने तर्क दिया कि भरण-पोषण उसकी पत्नी का व्यक्तिगत अधिकार था और उसकी मौत के बाद अब कार्रवाई का कोई कारण नहीं बचा। उसने कहा कि चूंकि कार्रवाई का कोई कारण नहीं था, इसलिए सरस्वती की मां कार्यवाही जारी रखने के लिए सक्षम नहीं थी और भरण-पोषण के बकाया का दावा करने की हकदार नहीं है। दूसरी ओर जया ने तर्क दिया कि बकाया राशि उनकी बेटी की संपत्ति थी। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1) (C) के तहत, बेटे और बेटियों की अनुपस्थिति में मां अपनी मृत बेटी की उत्तराधिकारी है। जया ने यह भी कहा कि उनकी बेटी के तलाक के बाद, अन्नादुरई कानूनी उत्तराधिकारी नहीं रहे। इस प्रकार, जया ने तर्क दिया कि वह बकाया राशि प्राप्त करने के लिए सक्षम है।
हाई कोर्ट
बार एंड बेंच के मुताबिक, 21 अप्रैल को पारित आदेश में हाई कोर्ट के जस्टिस वी शिवगणनम मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को चुनौती देने वाले अन्नादुरई द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें मुकदमेबाजी के दौरान उनकी तलाकशुदा पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी सास को 6.2 लाख रुपये के रखरखाव के बकाया की वसूली करने की अनुमति दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) की धारा 14 की सब-सेक्शन 1 और 2 को देखने से यह स्पष्ट हो गया है कि भरण-पोषण के बकाया को चल और अचल संपत्ति दोनों के रूप में माना जाना चाहिए, जिसे किसी ने एक डिक्री के तहत अर्जित किया था।
अदालत ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देने वाली मृतक बेटी के पूर्व पति द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें अदालत ने मां को भरण-पोषण के बकाया को प्राप्त करने के लिए पक्षकार बनाने की अनुमति दी थी। याचिकाकर्ता पति ने तर्क दिया था कि गुजारा भत्ता मृतक का व्यक्तिगत अधिकार था और उसकी मृत्यु के बाद यह अधिकार समाप्त हो गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15(1)(C) के अनुसार, मां अपनी बेटी की संपत्ति की हकदार है।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में, उसकी बेटी सरस्वती (याचिकाकर्ता की पत्नी) की मृत्यु तक भरण-पोषण का बकाया बनता है। इसलिए, निचली कोर्ट ने मृतक पुत्री (याचिकाकर्ता की पत्नी) की मां को भरण-पोषण के बकाया के लिए दायर याचिका में पक्षकार बनाकर उचित किया। निचली कोर्ट द्वारा पारित आदेश में कोई त्रुटि नहीं है और आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है और आपराधिक पुनरीक्षण मामले में कोई मैरिट नहीं है।
कोर्ट को जया की दलीलों में दम नजर आया। अदालत ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार एक्ट की धारा 14 के अनुसार भरण-पोषण का बकाया पत्नी की संपत्ति है। अदालत ने यह भी कहा कि जहां तक भरण-पोषण का बकाया देय है, यह संपत्ति की प्रकृति में होगा जो कि विरासत में मिला है, लेकिन भविष्य के भरण-पोषण का अधिकार संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 6 (डीडी) के आधार पर हस्तांतरणीय या विरासत योग्य नहीं है। कोर्ट ने प्रतिवादी के वकील की दलील से सहमति जताई कि चूंकि एक मां अपनी बेटी की संपत्ति की हकदार थी, इसलिए वर्तमान मामले में, प्रतिवादी मां अपनी बेटी की मृत्यु तक भरण-पोषण के बकाए की हकदार है।
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