कथित ‘कमजोर जेंडर’ को पति और ससुराल वालों से किसी भी तरह के उत्पीड़न या घरेलू हिंसा से बचाने के लिए भारत में महिला केंद्रित कानून बनाए गए थे। हालांकि, सालों/दशकों के बाद भी वर्तमान समय के साथ कानूनों में बदलाव के अभाव में कई महिलाएं खामियों का दुरुपयोग कर रही हैं और राहत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा रही हैं। ऐसे ही एक अजीबोगरीब मामले में मुंबई की मजिस्ट्रेट कोर्ट (Magistrate Court in Mumbai) ने अपने पति से अलग होने के 32 साल बाद अदालत जाने वाली महिला को कोई राहत देने से इनकार कर दिया है।
क्या है पूरा मामला?
कपल की शादी 1987 में हुई थी। महिला ने 2021 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें उसके द्वारा अपने पति और ससुराल वालों पर मई 1989 में कथित तौर पर उसे ससुराल से बाहर निकालने का आरोप लगाया गया था।
महिला ने यह भी दावा किया था कि उसके पति और ससुराल वालों ने धोखे से उसके दिवंगत पति और ससुराल वालों (महिला पहले शादीशुदा थी) की संपत्ति हड़प ली, जबकि उस संपत्ति पर उसका अधिकार है। महिला ने यह भी तर्क दिया कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत का दावा करने के लिए कोई सीमा अवधि नहीं है।
मजिस्ट्रेट कोर्ट, मुंबई
बोरीवली में स्थित मजिस्ट्रेट कोर्ट ने देरी का हवाला देते हुए घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण (Domestic Violence- DV) एक्ट के तहत महिला को राहत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि 32 साल और 6 महीने पहले पार्टियों के बीच घरेलू संबंध खत्म हो गए थे। इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि महिला किसी भी समय अपनी इच्छा के अनुसार प्रतिवादियों पर मुकदमा करने के लिए स्वतंत्र नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि दोनों पक्ष 1989 के बाद से एक साझा घर में नहीं रहे हैं, इसलिए घरेलू हिंसा के आरोप “बिल्कुल दूर के” हैं।
कोर्ट जाने की समय सीमा
समय की चूक के संबंध में अदालत ने कहा कि निर्धारित अवधि की सीमा नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि महिला किसी भी समय अपनी इच्छा के अनुसार प्रतिवादियों पर मुकदमा करने के लिए स्वतंत्र है। कोर्ट ने आगे कहा कि अगर ऐसा होता तो इस तरह के मुकदमे का कोई अंत नहीं होता। अदालत ने आखिरी में कहा कि उचित समय के भीतर याचिका दायर नहीं की गई थी।
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