बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि जब घरेलू हिंसा के मामले में कोई घरेलू हिंसा नहीं पाई जाती है तो पत्नी को इस आधार पर गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता है कि पति ने उसकी देखभाल करने इनकार कर दिया और उसकी उपेक्षा की। लीगल वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक, औरंगाबाद खंडपीठ के जस्टिस एसजी मेहारे ने कहा कि धारा 125 CrPC में दी गई “पत्नी के भरण-पोषण से इनकार और उपेक्षा” की अवधारणा घरेलू हिंसा एक्ट, 2005 में मौजूद नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
हाई कोर्ट ने सत्र न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें घरेलू हिंसा की शिकायत में पत्नी को भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया था, जबकि यह पाया गया था कि कोई घरेलू हिंसा नहीं हुई है। पत्नी ने DV एक्ट की धारा 12 के तहत अर्जी दाखिल की थी। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (JMFC) ने सबूतों पर विचार किया और निष्कर्ष निकाला कि उसने अदालत के सामने जो कुछ भी गवाही दी थी, उसकी दलील उसके आवेदन में नहीं दी गई थी और उसने जो भी दलील दी थी, उसे अदालत के सामने पेश नहीं किया गया था।
हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा को साबित करने के लिए टेस्ट और भरण-पोषण से इनकार और उपेक्षा अलग-अलग हैं। घरेलू हिंसा एक्ट में भरण-पोषण से इनकार और उपेक्षा का परीक्षण करने के लिए कोई प्रावधान नहीं थे। घरेलू हिंसा की अवधारणा विशिष्ट है, जैसा कि DV एक्ट में प्रदान किया गया है। इसकी तुलना CrPC 125 की अवधारणा से नहीं की जा सकती। उसने कभी यह दलील नहीं दी कि आवेदक/पति ने उसे इनकार किया और उसकी उपेक्षा की। ट्रायल कोर्ट के सामने भी यह मुद्दा नहीं था… इनकार और उपेक्षा की अवधारणा पर विचार की जाए और डीवी एक्ट में पत्नी को भरण-पोषण दिया जाए। डीवी एक्ट में गुजाराभत्ता देना उक्त कानून के क्षेत्राधिकार से बाहर है।
अपील में अतिरिक्त सत्र जज ने JMFC के इस निष्कर्ष की पुष्टि की कि कोई घरेलू हिंसा नहीं थी, और वह आर्थिक राहत, मकान किराया, दहेज की वापसी और मुआवजे की हकदार नहीं थी। हालांकि, जज ने मामले को CrPC की धारा 125 के तहत एक आवेदन के रूप में मानते हुए कहा कि आवेदक ने इनकार कर दिया और अपनी पत्नी के भरणपोषण की उपेक्षा की और भरण-पोषण का आदेश दिया। इसलिए आवेदक ने पुनरीक्षण आवेदन में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। न्यायिक मजिस्ट्रेट के फैसले से, अदालत ने कहा कि उसने पत्नी के सबूतों की सूक्ष्मता से जांच की और उसके आवेदन को खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट ने कहा कि डीवी एक्ट एक कानून “के अतिरिक्त” है और किसी अन्य कानून के “अनादर” में नहीं है। इसलिए, पत्नी एक साथ डीवी एक्ट के साथ-साथ CrPC 125 के तहत राहत का दावा कर सकती है। इस मामले में, शिकायत डीवी एक्ट के तहत थी, लेकिन धारा 125 CrPC के तहत भरण-पोषण से इनकार और उपेक्षा की अवधारणा के अनुसार भरण-पोषण दिया गया था। इसलिए, अदालत ने कहा कि अतिरिक्त सत्र जज मामले में शामिल दलीलों और कानूनों से परे गए।
हाई कोर्ट ने फैसले के आखिरी में कहा कि घरेलू हिंसा एक्ट के मामले में पत्नी को भरण-पोषण देना अतिरिक्त सत्र जज के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इस प्रकार, अदालत ने अतिरिक्त सत्र जज के फैसले को रद्द कर दिया और न्यायिक मजिस्ट्रेट के फैसले को बरकरार रखा।
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