मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में एक महिला की ओर से अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दायर FIR को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा, “कोई भी नवविवाहित पत्नी अपने वैवाहिक घर को तब तक बर्बाद नहीं करना चाहेगी जब तक उसे प्रताड़ित न किया जाए।” पति और ससुराल वालों के खिलाफ महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ IPC की धारा 498-A, 294, 323, 506 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 के तहत FIR दर्ज कराई है।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 में कपल ने शादी की थी। शादी के अगले ही दिन पति के दादा का निधन हो गया। महिला का आरोप है कि इसी बात पर उसके पति और ससुराल वालों ने उसे ये कहकर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया कि वो उनके घर के लिए शुभ नहीं है। आरोप है कि उन्होंने पर्याप्त दहेज न लाने के लिए उसे प्रताड़ित करना भी शुरू कर दिया और दहेज के रूप में अपने माता-पिता से 5 लाख रुपये लाने को कहा। महिला ने आरोप लगाया कि ससुराल वालों के उकसाने पर उसके पति ने भी उसे कई बार मारा- पीटा।
दूसरी तरफ पति और ससुराल वालों के वकील ने तर्क दिया कि महिला और आरोपी पति की शादी शिकायत दर्ज करने से केवल 8 महीने पहले हुई थी। FIR में पत्नी के साथ क्रूरता या उत्पीड़न को साबित करने के लिए कोई तारीख, समय और घटना का उल्लेख नहीं किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि शादी के बाद महिला अपने पति के साथ 30 दिन भी नहीं रही। महिला का स्वभाव अच्छा नहीं है और वह काफी झगड़ालू है। ससुराल पक्ष महिला द्वारा दर्ज करवाई गई FIR को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
हाई कोर्ट
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनी और सबूतों को देखा। इसके बाद अदालत ने कहा कि FIR के तहत पति और सुसरालवालों पर कई आरोप लगाए गए हैं। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि मामले में पति को झूठा फंसाया जा रहा है, क्योंकि इसके लिए कोई सबूत पेश नहीं किया गया है। अभी मामले की पुलिस जांच चल रही है। जब तक पुलिस जांच पूरा नहीं कर लेती तब तक पति और ससुराल वालों को कोई राहत नहीं दी जा सकती।
जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल ने कहा कि FIR शादी के 8 महीने के भीतर ही दर्ज कराई गई। और कोई भी नवविवाहित पत्नी अपने वैवाहिक घर को तब तक बर्बाद नहीं करना चाहेगी जब तक कि दहेज की मांग करके उसे परेशान न किया जाए या उसके साथ क्रूरता न की जाए। इसलिए ये नहीं कहा जा सकता है कि लगाए गए आरोप झूठे या निराधार हैं। बेंच ने आगे कहा कि कानून की यह भी स्थापित स्थिति है कि CrPC की धारा 482 के तहत, यह अदालत FIR को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका पर विचार करते समय सबूतों की सराहना नहीं कर सकती है।”
अदालत ने आगे कहा कि ये कानून की स्थापित धारणा है कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियां बहुत व्यापक हैं लेकिन व्यापक शक्ति प्रदान करने के लिए अदालत को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही अदालत ने पति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि आरोप सही हैं या नहीं, इस पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। अभी पुलिस जांच चल रही है।
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