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Home हिंदी कानून क्या कहता है

सेमी न्यूड बॉडी पर बच्चों से पेंट करवाने वाली महिला को केरल HC ने किया बरी, बोला- ‘इसे यौन या अश्लील नहीं माना जाना चाहिए’

Team VFMI by Team VFMI
June 6, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Kerala High Court Dissolves 38 Yrs Old Marriage, Says Retaining Marriage Even After Irretrievable Break Down Amounts To Cruelty

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केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने सेमी-न्यूड बॉडी पर नाबालिग बच्चों से पेंट करवाने के मामले में महिला एक्टिविस्ट रेहाना फातिमा को बरी कर दिया है। हाई कोर्ट ने महिला को उसके सेमी-न्यूड शरीर पर पेंटिंग करने वाले अपने बच्चों का वीडियो बनाने से संबंधित आपराधिक मामले से मुक्त करते हुए कहा कि न्यूडिटी को अश्लीलता या अनैतिकता में बांटना गलत है। कोर्ट ने कहा कि इसे यौन या अश्लील नहीं माना जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि किसी महिला के ऊपरी शरीर की नग्नता को डिफॉल्ट रूप से यौन या अश्लील नहीं माना जाना चाहिए।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, कुछ महीने पहले सामाजिक एक्टिविस्ट रेहाना फातिमा एक केस के कारण सुर्खियों में आ गई थीं। उनपर आरोप है कि उसने एक वीडियो शेयर किया, जिसमें वह अपने नाबालिग बच्चों से अपने अर्धनग्न शरीर पर पेंटिंग करवाती नजर आ रही है। इस मामले में महिला के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था। उन्होंने अर्ध नग्न होकर अपने नाबालिग बेटे और बेटी से अपनी शरीर पर पेटिंग बनवाई थी। यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था।

महिला के इस स्पष्टीकरण पर ध्यान देते हुए कि वीडियो महिला शरीर के बारे में पैट्रीआर्कल धारणाओं को चुनौती देने और उसके बच्चों को उचित यौन शिक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया था। वीडियो वायरल होने के बाद इसका भारी विरोध हुआ। फिर उनके खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO), सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67B (d) और किशोर न्याय (देखभाल) की धारा 75 की धारा 13, 14 और 15 के तहत अपराधों के लिए आरोप पत्र दायर किया गया था।

हाई कोर्ट में अपनी अपील में महिला ने सवाल उठाया था कि पुरुष शरीर को सिक्स पैक एब्स, बाइसेप्स आदि के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। अक्सर पुरुषों को बिना शर्ट पहने घूमते हुए पाते हैं। लेकिन इन कृत्यों को कभी भी अश्लील या अशोभनीय नहीं माना जाता है। एक आदमी के आधे नग्न शरीर को सामान्य माना जाता है और ना की कामुक, लेकिन एक महिला शरीर के साथ उसी तरह व्यवहार नहीं किया जाता है। कुछ लोग तो औरत के नंगे जिस्म को अजीब समझने के आदी हो गए हैं।

हाई कोर्ट

हाई कोर्ट ने महिला को इस केस से बरी करते हुए कहा कि हर माता-पिता को अपने बच्चे को पालने का इच्छानुसार अधिकार है। जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने महिला की उपरोक्त दलील को सही मानते हुए बच्चों द्वारा मां के शरीर पर पेंटिंग करने को यौन क्रिया नहीं माना। यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि उन्होंने अपने बच्चों का उपयोग किसी यौन कृत्यों के लिए किया था। कोर्ट ने कहा कि महिला का अपने शरीर के बारे में स्वायत्त निर्णय लेने का अधिकार है। यह संविधान के आर्टिकल 21 द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दायरे में भी आता है।

अश्लीलता के आरोप पर कोर्ट ने कहा कि बच्चे वीडियो में नग्न नहीं थे और एक हानिरहित और रचनात्मक गतिविधि में भाग ले रहे थे। आईटी एक्ट को लागू करने के लिए विचाराधीन अधिनियम को यौन रूप से स्पष्ट अश्लील या अशोभनीय होना चाहिए, लेकिन इसमें ऐसा नहीं था। कोर्ट ने कहा कि वीडियो को अश्लील नहीं माना जा सकता है। जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने महिला को राहत देते हुए निकाय स्वायत्तता के सिद्धांतों का आह्वान किया।

अदालत ने महिला को पॉक्सो के तहत लगे आरोपों से बरी करते हुए कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि बच्चे किसी यौन क्रिया के तहत यह काम कर रहे हों। अदालत ने कहा कि महिला ने बच्चों को कैनवास की तरह अपने शरीर को रंगने की इजाजत दे दी। अपने शरीर के बारे में स्वायत्त निर्णय लेना एक महिला का अधिकार है। यह समानता और निजता के उनके मौलिक अधिकार के तहत आता है। इसके साथ ही संविधान का आर्टिकल 21 भी उसे ऐसा करने की अनुमति देता है।

कोर्ट ने आगे कहा कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो महिलाओं की नग्नता को कलंक मानते हैं और उसे सिर्फ यौन तुष्टि से जोड़कर देखते हैं। कोर्ट ने कहा कि महिला द्वारा जारी वीडियो का उद्देश्य समाज में मौजूद यह दोहरा मानदंड का पर्दाफाश करना था। इसके साथ ही आखिरी में जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि नग्नता को सेक्स के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। महिला के ऊपरी निवस्त्र शरीर को देखने मात्र को यौन तुष्टि से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। इसलिए, महिलाओं के निवस्त्र शरीर के प्रदर्शन को अश्लील, असभ्य या यौन तुष्टि से नहीं जोड़ा जा सकता है।

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