बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में घोर दुराचार के आरोप में एक महिला सरपंच को हटाने का आदेश दिया था। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि महिला के घोर दुराचार को अगर माफ कर दिया गया तो महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य विफल हो जाएगा। अदालत ने महाराष्ट्र के ग्रामीण विकास मंत्री द्वारा पारित आदेशों को रद्द कर दिया, जिसमें एक महिला सरपंच के दुराचार को माफ कर दिया गया था।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, ‘बार एंड बेंच’ के मुताबिक अदालत ग्रामीण विकास मंत्री के फैसले पर सवाल उठाने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने 26 मई, 2022 को रायगढ़ जिले के अंबिवली गांव के सरपंच पद से प्रतिमा गाइकर (Pratima Gaikar) को नहीं हटाने का फैसला किया था। ग्रामीण विकास मंत्री ने 19 अप्रैल, 2022 को संभागीय आयुक्त द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें गायकर को उनके कदाचार के कारण पद से हटाने का आदेश दिया गया था। गाइकर को 2019 में हुए चुनावों के लिए सीधे उम्मीदवार के रूप में चुना गया था। वह ग्राम जल आपूर्ति और स्वच्छता समिति की अध्यक्ष भी थीं।
सरकारी संकल्पों के अनुसार उक्त समिति के बैंक अकाउंट का संचालन अध्यक्ष द्वारा आशा सेविका के साथ किया जाना था। पहले इसका संचालन अध्यक्ष एवं आंगनबाड़ी सेविका द्वारा संयुक्त रूप से किया जाना था। यह बताया गया कि सरकारी प्रस्तावों का उल्लंघन करते हुए गायकर ने चेक जारी करके 15,549 रुपये की राशि वापस ले ली। उन्होंने यह राशि नियुक्त आशा सेविका से नहीं, बल्कि एक आंगनबाड़ी सेविका से निकाली।
संभागीय आयुक्त ने इसे घोर कदाचार माना, क्योंकि गायकर ने अनिवार्य नियमों का उल्लंघन करते हुए राशि वापस लेकर राशि का गबन किया था। हालांकि, मंत्री ने आयुक्त के फैसले को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि चूंकि गायकर एक महिला हैं, इसलिए उन्हें पद से हटाने से महिला सशक्तिकरण के आदर्शों का उल्लंघन होगा।
कोर्ट का आदेश
‘बार एंड बेंच’ वेबसाइट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, बॉम्बे हाई कोर्ट ने महिला सरपंच को हटाने को सही ठहराते हुए कहा कि एक महिला पदाधिकारी के गलत काम या दुराचार को माफ करने से एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिला सशक्तिकरण की अवधारणा विफल हो जाएगी। जस्टिस एन जे जमादार ने महाराष्ट्र के ग्रामीण विकास मंत्री द्वारा पारित आदेशों को रद्द कर दिया, जिन्होंने महिला सरपंच के दुराचार को माफ कर दिया था। अदालत ने कहा कि एक महिला पदाधिकारी के गलत काम को माफ करने से लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिला सशक्तिकरण की अवधारणा विफल हो जाएगी।
अदालत ने कहा कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रदान करके महिला का सशक्तिकरण जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करने की मुख्य विशेषताओं में से एक रहा है। स्थानीय-स्वशासन में महिलाओं की भागीदारी को सार्वजनिक जीवन में अधिक ईमानदारी सुनिश्चित करने का एक उपाय माना जाता है। आदेश में कहा गया है कि अगर महिलाओं के हितों को आगे बढ़ाने की आड़ में किसी विशेष महिला के घोर दुराचार को माफ किया जाता है तो महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि ग्रामीण विकास मंत्री द्वारा दिया गया यह कारण कि लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित महिला सरपंच को हटाना महिला सशक्तिकरण की नीति के विपरीत होगा, स्वीकार नहीं किया जा सकता। जज ने कहा कि मंत्री (ग्रामीण विकास) ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि सिद्ध कदाचार के लिए एक पदाधिकारी को हटाना भी एक बड़े जनहित को पूरा करता है और लोकतंत्र को मजबूत करता है। कोर्ट ने मामले के तथ्यों को देखने के बाद मंत्री के फैसले को रद्द कर दिया और गाइकर को पद से हटाने के कमिश्नर के आदेश को बरकरार रखा।
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