मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ (Indore Bench in Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट (HMA) की धारा- 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण के लिए दायर आवेदन पर निर्णय देते समय पारित आदेश के खिलाफ अपील फैमिली कोर्ट एक्ट (Section 19 of the Family Courts Act.) की धारा 19 के तहत सुनवाई योग्य है। लाइव लॉ वेबसाइट के अनुसार, जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस अमर नाथ केशरवानी की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 के तहत दायर एक आवेदन में कार्यवाही कानून की धारा 9 या 13 के तहत अन्य कार्यवाही से स्वतंत्र है और इसलिए आवेदन पर फैसला करते समय पारित आदेश प्रकृति में अंतिम है, लेकिन यह संवादात्मक नहीं (Application is Final in nature and Not Interlocutory) है।
क्या है पूरा मामला?
अपीलकर्ता और प्रतिवादी विवाहित थे, हालांकि वैवाहिक कलह के कारण वे अलग हो गए थे। 12 साल के अलगाव के बाद, अपीलकर्ता ने क्रूरता के आधार पर कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन किया। सम्मन प्राप्त होने पर प्रतिवादी ने हिंदू मैरेज एक्ट की धारा 24 के तहत एक याचिका दायर किया, जिसमें अपीलकर्ता से 2 लाख रुपये प्रति माह के अंतरिम भरण-पोषण की मांग की।
दलीलों और सबूतों के आधार पर, फैमिली कोर्ट ने प्रतिवादी के पक्ष में अंतरिम भरण-पोषण के रूप में प्रति माह 40,000 रुपये और मुकदमेबाजी के खर्च के रूप में 70,000 रुपये का आदेश दिया।
अपिलकर्ता का तर्क
फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपीलकर्ता ने हाई कोर्ट में एक अपील दायर की। अपीलकर्ता ने हाई कोर्ट में कहा कि प्रतिवादी एक योग्य डॉक्टर है और वह अलगाव के दरमियान 10 साल से मुंबई में बिना किसी भरण-पोषण के पैसे के रह रही थी। इसलिए, यह दावा किया गया कि प्रतिवादी को दिया गया भरण-पोषण अनुचित है और इसे रद्द किया जा सकता है।
हाई कोर्ट ने अपील को सुनवाई योग्य माना
हाई कोर्ट ने कहा कि अंतरिम भरण-पोषण का फैसला करने के लिए साक्ष्य अलग से दर्ज किया जाता है और हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 9 या 13 के तहत दायर मुख्य याचिका पर फैसला करते समय इस पर विचार नहीं किया जा सकता है। इसलिए, आवेदक या प्रतिवादी की ओर से आवेदन दाखिल करके धारा 24 के तहत शुरू की गई कार्यवाही स्वतंत्र कार्यवाही है और इसमें पारित आदेश अंतिम आदेश है। इसलिए, फैमिली कोर्ट की धारा 19 के तहत अपील सुनवाई योग्य है।
आदेश
हाई कोर्ट ने कहा कि हिंदू मैरेज एक्ट की धारा 24 के तहत दायर एक आवेदन पर निर्णय लेने का आदेश अंतिम प्रकृति का है और इसलिए, इसके खिलाफ दायर अपील फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19 के तहत सुनवाई योग्य होगी। इसी के साथ प्रतिवादी की ओर से पेश की गई आपत्ति को खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने तब मामले की खूबियों की जांच की। यह देखा गया कि प्रतिवादी ने 12 साल तक अपीलकर्ता से अलग रहने के दरमियान एक बार भी भरण-पोषण की मांग नहीं की थी। हालांकि, तलाक की कार्यवाही शुरू होने के बाद ही उसने इसके लिए आवेदन किया।
अदालत ने अपने फैसले में आगे कहा कि प्रतिवादी की ओर से पेश की गई दलीलों में कोई योग्यता नहीं थी कि हाई क्वालिफिकेशन के बावजूद, वह प्रति माह 7,000 रुपये की मामूली राशि कमा रही थी। कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता और प्रतिवादी 2008 से अलग रह रहे हैं। अपीलकर्ता गुरुग्राम में रह रहा है और प्रतिवादी मुंबई में रहती है। वह पिछले 12 सालों से अपना भरण-पोषण कर रही है और उसने कभी भी भरण-पोषण का दावा नहीं किया। वह हाई क्वालिफाइड डॉक्टर हैं।
कोर्ट ने कहा कि डिक्लेरेशन के मुताबिक वह मुंबई से इंदौर फ्लाइट से आती-जाती है। उसने साल में कम से कम चार बार हवाई यात्रा की है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि हाई क्वालिफिकेशन के बावजूद वह केवल 7,000 रुपये प्रति माह की आय पर जीवित है। कोर्ट ने कहा यह फोर्थ कैटेगरी के कर्मचारी को देय न्यूनतम मजदूरी से भी कम है। उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, अदालत ने माना कि प्रतिवादी को दिया गया अंतरिम भरण-पोषण उच्चतम स्तर पर है। तदनुसार, अदालत ने अंतरिम भरण-पोषण की राशि को घटाकर 10,000 प्रति माह और मुकदमेबाजी की लागत 30,000 रुपये कर दिया।
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