इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने अपने एक हालिया आदेश में वैवाहिक विवादों (Matrimonial Disputes) को निपटाने के लिए आवेदक/पति द्वारा जमा की गई राशि प्राप्त करने के लिए पत्नी के माता-पिता की मध्यस्थता केंद्र (Mediation Center) में आने की प्रवृत्ति (tendency) की निंदा की। लाइवलॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस राहुल चतुर्वेदी (Justice Rahul Chaturvedi) की खंडपीठ ने पाया कि पार्टी काफी नॉन-सीरियस तरीके से और प्रीमेडिटेटेड माइंड से मध्यस्थता की प्रक्रिया में आ रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, फ़राज़ हसन (पति) ने अपने खिलाफ दर्ज एक मामले के संबंध में अपनी अग्रिम जमानत याचिका के साथ इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया था। फ़राज़ हसन (Faraz Hasan) के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए, धारा 323, धारा 308 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत केस दर्ज किया गया है।
हसन के वकील ने अदालत को सूचित किया कि चूंकि मामला वैवाहिक कलह और पार्टियों के बीच गलतफहमी से संबंधित है, इसलिए विवाद को इलाहाबाद हाई कोर्ट के मेडिएशन सेंटर को भेजा जा सकता है। इस सबमिशन से सहमत होते हुए और पक्षों के बीच मतभेदों की प्रकृति एवं अभियोजन की प्रकृति पर विचार करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि यह न्याय के हित में होगा कि पार्टियों को अपनी गलतफहमी और मुद्दों (यदि कोई हो तो) को सौहार्दपूर्ण तरीके से निपटाने दें।
पति को पैसे जमा करने के निर्देश
इसलिए हाई कोर्ट ने आवेदक/पति को 50,000 रुपये की राशि मेडिएशन सेंटर में जमा करने का निर्देश दिया, जिसमें से पूरी राशि का भुगतान मेडिएशन सेंटर के समक्ष मध्यस्थता प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही पत्नी को किया जाएगा। इस मामले में चूंकि पत्नी की हालत नाजुक है, अदालत ने उसके माता-पिता को मध्यस्थता के उद्देश्य से उसकी ओर से पेश होने का निर्देश दिया।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी और आदेश
हालांकि, मामले से अलग होने से पहले अदालत ने कहा कि यह कोर्ट के संज्ञान में आया है कि पक्ष पूर्व नियोजित योजना के साथ मध्यस्थता के लिए आते हैं। इसके अलावा, कोर्ट ने इस प्रकार टिप्पणी की:
– कोर्ट ने कहा कि मामले को A.H.C.M.C.C. इस आशा और विश्वास के साथ देखेगी कि पार्टियां इस प्रक्रिया और प्लेटफॉर्म का उपयोग कुछ उपयोगी परिणाम प्राप्त करने के लिए करेंगी। मध्यस्थता की प्रक्रिया आवेदक द्वारा जमा की गई राशि अर्जित करने के लिए नहीं है।
– अदालत ने कहा कि यदि पत्नी के माता-पिता अपने दिमाग में एक अलग डिजाइन के साथ मेडिएशन सेंटर में आ रहे हैं और केवल आवेदक द्वारा जमा की गई राशि प्राप्त करने के लिए, तो इस प्रथा को बहिष्कृत और निंदा करना होगा।
– इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, तत्काल मामले में अदालत ने निर्देश दिया कि यदि पत्नी के माता-पिता आते हैं और मध्यस्थता की प्रक्रिया में भाग लेते हैं, तो पूरी राशि उन्हें एक बार में नहीं सौंपी जाएगी। कोर्ट ने कहा कि उन्हें निम्नलिखित तरीके से सौंपी जाएगी…
– यदि पत्नी के माता-पिता केवल एक डेट में मेडिएशन सेंटर से संपर्क करते हैं और प्रस्तुत करते हैं कि उन्हें मध्यस्थता की प्रक्रिया में कोई दिलचस्पी नहीं है या बिना किसी उचित कारण के लगातार अवसरों से अनुपस्थित हैं, तो आवेदक द्वारा जमा की गई पूरी राशि का केवल 50%, उन्हें या उनके प्रतिनिधियों या वकील को सौंप दिया जाएगा और शेष राशि आवेदक को जाएगी।
यदि केस लड़ने वाले पक्ष दो या दो से अधिक अवसरों के लिए मेडिएशन की प्रक्रिया में आ रहे हैं और भाग ले रहे हैं, तो केवल पत्नी के माता-पिता ही पूरी राशि के हकदार होंगे।
– इसके साथ ही मामले को मेडिएशन सेंटर को इस निर्देश के साथ प्रेषित किया गया था कि मध्यस्थता और सुलह की कार्यवाही दोनों पक्षों को नोटिस देने के बाद तीन महीने की अवधि के भीतर समाप्त कर दी जाए। तत्पश्चात हाई कोर्ट मध्यस्थता एवं सुलह केंद्र, इलाहाबाद की रिपोर्ट प्राप्त होने पर उपयुक्त न्यायालय के समक्ष दिनांक 20.05.2022 को मामले को सूचीबद्ध किया जाएगा।
– अंत में, सूचीबद्ध होने की अगली डेट तक हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि उपरोक्त मामले में आवेदक के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी, ताकि पक्षकारों को उनके बीच की दीवार को तोड़ने में सक्षम बनाया जा सके।
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ARTICLE IN ENGLISH:
READ ORDER | Parents Of Wife Come To Mediation Centre Only For Receiving Amount, Not Settlement Of Matrimonial Disputes: Allahabad High Court
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