मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक महिला के पति से कहा गया था (जिससे उसने अपने पहले पति को छोड़ने के बाद शादी की थी) उसे 10,000 रुपये का मासिक रखरखाव भत्ता दे। कोर्ट में सुनवाई के दौरान बाद में पता चला था कि उसने अपने पहले पति को तलाक नहीं दिया था। और इस तरह वह दूसरे आदमी की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी नहीं थी।
क्या है पूरा मामला?
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, अपीलकर्ता भगवान दास ने अपनी याचिका में कहा कि सिंगरौली की एक फैमिली कोर्ट ने उसे CrPC की धारा 125 के तहत अपनी पत्नी को 10,000 रुपये देने का आदेश दिया था। पत्नी पानपती से उन्होंने 29 मार्च, 2017 को “मुख्यमंत्री कन्यादान योजना” के तहत आयोजित सामूहिक विवाह कार्यक्रम में शादी की थी। 11 अगस्त 2017 को उसने उसे छोड़ दिया था।
मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने कोर्ट को बताया कि पानपती की पहली शादी साल 2006-07 में सुशील कुमार गुप्ता से हुई थी। शादी के 5-6 साल बाद कुछ वैवाहिक विवाद के कारण उसने उसे छोड़ दिया लेकिन उसने औपचारिक रूप से उसे तलाक नहीं दिया। उन्होंने तर्क दिया कि तलाक के अभाव में दूसरी शादी कानूनी नहीं है और इस तरह वह भरण-पोषण भत्ते की हकदार नहीं है। हालांकि, महिला ने अदालत को बताया कि उसने आपसी सहमति से तलाक के बाद अपने पहले पति को छोड़ दिया था।
हाई कोर्ट
जस्टिस राजेंद्र कुमार वर्मा की पीठ ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति के साथ विवाह की रस्में निभाने से जरूरी नहीं कि उसे पत्नी या पति का दर्जा मिल जाए। हालांकि, उन्होंने महिला को सक्षम अदालत में DV एक्ट की धारा 22 के तहत एक अलग दावा मुकदमा दायर करने की स्वतंत्रता दी।
हालांकि, अदालत ने माना कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत तलाक देने का अधिकार केवल अदालत को है। चूंकि उसने अपने पहले पति से तलाक नहीं लिया था, इसलिए वह अपने दूसरे पति से भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है क्योंकि उनकी शादी अवैध है। हालांकि, अदालत ने महिला को घरेलू हिंसा एक्ट की धारा 22 के प्रावधानों के तहत याचिकाकर्ता से दावों के लिए एक अलग मुकदमा दायर करने की स्वतंत्रता दी।
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