देश भर में महिला छात्रों और कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म (Menstrual Leave) की छुट्टी की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (PIL) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दायर की गई है। यह याचिका वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने दायर की है। PIL में मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 14 को प्रभावी ढंग से लागू करने के निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म पीड़ा या मासिक धर्म अवकाश की मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से राज्य सरकारों एवं केंद्र से महिलाओं के लिए मासिक धर्म के दौरान छुट्टी के लिए नियम बनाने के लिए निर्देश जारी करने को कहा गया है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता के मुताबिक बिहार ही एकमात्र ऐसा राज्य है जो 1992 की नीति के तहत विशेष मासिक धर्म अवकाश प्रदान करता है। ऐसे में देश के अन्य राज्यों में महिलाओं को मासिक धर्म के दर्द या मासिक धर्म की छुट्टी से इनकार करना संविधान के आर्टिकल 14 के तहत समानता और गरिमापूर्ण जीवन जीने के उनके मौलिक संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है।
याचिका में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के एक स्टडी का हवाला दिया गया है, जिसके अनुसार मासिक धर्म के दौरान एक महिला को जितना दर्द होता है, उतना ही दर्द एक व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ने पर होता है। यह कहते हुए कि इस तरह का दर्द एक कर्मचारी की उत्पादकता को कम करता है और उनके काम को प्रभावित करता है। याचिका में तर्क दिया गया है कि कुछ भारतीय कंपनियां जैसे कि Ivipanan, Zomato, Byju’s, Swiggy , Mathrubhumi, Magzter, Industry, ARC, FlyMyBiz और Gozoop पेड पीरियड लीव की पेशकश करती हैं।
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि ब्रिटेन, चीन, जापान, ताइवान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन और जाम्बिया पहले से ही किसी न किसी रूप में मासिक धर्म दर्द अवकाश दे रहे हैं। लिहाजा भारत में सभी कंपनियों और संस्थानों को इसकी परिपालना सुनिश्चित करने का आदेश दिया जाए।
याचिका के अनुसार, यह तदनुसार आर्टिकल 14 का उल्लंघन है, क्योंकि यह अधिनियम संघवाद और राज्य की नीतियों के नाम पर महिलाओं को अलग करता है। इसके बावजूद महिलाएं अपने मासिक धर्म चक्र के दौरान समान शारीरिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित होती हैं। उनके साथ भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग व्यवहार किया जाता है। हालांकि, एक नागरिकता, यानी भारत की महिलाओं के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए और उन्हें समान अधिकार प्रदान किया जाएगा।
याचिकाकर्ता के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा कि मासिक धर्म छुट्टी को लेकर विधायी इच्छाशक्ति की कमी है। क्योंकि संबंधित मामलों पर लोकसभा में दो निजी सदस्य बिल पेश किए गए थे, लेकिन दोनों बिल लैप्स हो गए हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि यदि कुछ संगठनों और राज्य सरकारों को छोड़कर, समाज, विधायिका और अन्य हितधारकों द्वारा जाने-अनजाने में मासिक धर्म की अवधि में छुट्टी की मांग को अनदेखा किया गया है।
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