सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक हालिया आदेश में कहा है कि शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच ‘प्रेम संबंध’ (love affair) प्रासंगिक नहीं है जब लड़की नाबालिग हो। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को धारा 376 IPC और धारा 6 पॉक्सो एक्ट के तहत एक आरोपी व्यक्ति की जमानत याचिका रद्द कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि अभियोक्ता नाबालिग है। अभियोक्ता और आरोपी के बीच प्रेम संबंध था, आरोपी ने कथित रूप से शादी से इनकार कर दिया। हालांकि प्रेम संबंध का आधार जमानत पर विचार करने के लिए अप्रासंगिक होगा।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ झारखंड हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर विचार कर रही थी। झारखंड हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने उसे जमानत दी थी। झारखंड हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने अगस्त, 2021 में दूसरे प्रतिवादी/आरोपी के जमानत आवेदन को शर्तों के अधीन अनुमति दी थी। पीठ ने कहा कि 27 जनवरी 2021 को जिला रांची में अन्य बातों के साथ-साथ आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए FIR दर्ज की गई थी।
पीठ ने रिकॉर्ड किया कि याचिकाकर्ता की शिकायत में यह आरोप लगाया गया कि जब वह नाबालिग थी तो दूसरा प्रतिवादी उसे एक आवासीय होटल में ले गया और शादी करने के आश्वासन पर उसके साथ यौन संबंध बनाए। शिकायतकर्ता ने आगे बताया कि दूसरे प्रतिवादी ने उससे शादी करने से इनकार किया और उसने उसके पिता को अश्लील वीडियो भेजे।
वहीं, दूसरे प्रतिवादी ने अग्रिम जमानत के लिए विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो), रांची के समक्ष आवेदन दिया, जिसे फरवरी, 2021 में खारिज कर दिया गया। इसके बाद, दूसरे प्रतिवादी ने आत्मसमर्पण कर दिया और जमानत की मांग की।
इसके बाद 24 मई 2021 को विशेष न्यायाधीश के समक्ष आरोप पत्र पेश किया गया। जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने आगे दर्ज किया कि झारखंड हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने जमानत के लिए आवेदन की अनुमति दी है। उन्होंने जिन कारणों को जमानत का आधार माना है, वह निम्नलिखित हैं-
Cr.P.C की धारा 164 के तहत दिए गए बयान के साथ-साथ FIR में किए गए बयानों से यह प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच प्रेम संबंध था और याचिकाकर्ता ने शिकायकर्ता से विवाह करने से इनकार कर दिया, मामला केवल इसी बिंदु पर स्थापित किया गया प्रतीत होता है।
शिकायतकर्ता लड़की का तर्क
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, अपीलकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर ने तर्क दिया कि आधार कार्ड में दर्ज अपीलकर्ता की जन्मतिथि एक जनवरी 2005 है। इसके अलावा जिस समय कथित अपराध हुए थे, उस समय उसकी उम्र लगभग 13 साल थी। वहीं, आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों के सापेक्ष, जिन कारणों का हाईकोर्ट ने परीक्षण किया है, वे प्रथम दृष्टया असंगत हैं और जमानत के लिए आवेदन की अनुमति नहीं दी जा सकती थी।
ग्रोवर सोमवार को मौखिक रूप से कोर्ट में पेश हुए थे। उन्होंने अदालत में कहा कि आरोपी 20 साल का था, इसलिए ऐसा नहीं है कि जब यह हुआ था तब वे दोनों नाबालिग थे। 13 साल की बच्ची कानून में सहमति नहीं दे सकती थी। वैधानिक रूप से यह बलात्कार है। दुर्भाग्य से हाईकोर्ट का कहना है कि दोनों के बीच प्रेम संबंध था और यह मामला तभी दर्ज किया गया जब उसने शादी से इनकार कर दिया और इसलिए जमानत दी गई।
प्रतिवादी द्वारा किया गया बचाव (आरोपी व्यक्ति)
पीठ ने आदेश में आगे दर्ज किया कि दूसरे प्रतिवादी की ओर से पेश वकील राजेश रंजन ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज अभियोक्ता के बयान पर भरोसा किया है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि आरोप पत्र पेश किया जा चुका है, लेकिन कथित अश्लील वीडियो की कोई बरामदगी नहीं हुई है, और न ही यह इंगित करने के लिए कोई मेडिकल साक्ष्य है कि दूसरे प्रतिवादी ने अपीलकर्ता के साथ यौन संबंध बनाए।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
जस्टिस सूर्यकांत ने इस प्वाइंट पर मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि मेडिकल साक्ष्य और सब कुछ परीक्षण का मामला है। इसके बाद पीठ ने कहा कि हमारे विचार में हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से जमानत के लिए आवेदन की अनुमति देने में गलती की थी, विशेष रूप से इस आधार पर कि धारा 164 के तहत बयान के साथ-साथ एफआईआर से ऐसा प्रतीत होता है कि अपीलकर्ता और दूसरे प्रतिवादी के बीच प्रेम प्रसंग था और दूसरे प्रतिवादी द्वारा अपीलकर्ता के साथ विवाह करने से इनकार करने पर मामला स्थापित किया गया था।
पीठ ने आगे कहा कि प्रथम दृष्टया अदालत के समक्ष मौजूद सामग्री से प्रकट होता है कि अपीलकर्ता उस तारीख को मुश्किल से 13 साल का था जब कथित अपराध हुआ था, इस आधार पर कि दोनों के बीच ‘प्रेम संबंध’ था, शादी से कथित इनकार जमानत के खिलाफ परिस्थितियां हो सकती हैं। अदालत ने कहा कि अभियोक्ता की उम्र और प्रकृति और अपराध की गंभीरता को देखते हुए, जमानत देने का कोई मामला स्थापित नहीं किया गया था।
पीठ ने आगे कहा कि जमानत देने के अपने आदेश में हाईकोर्ट द्वारा जिन परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया था, वे आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के प्रावधानों के संबंध में प्रकृति में अप्रासंगिक हैं। अदालत ने कहा कि हम तदनुसार अपील की अनुमति देते हैं और हाईकोर्ट के आक्षेपित आदेश को रद्द करते हैं। हाईकोर्ट के आक्षेपित आदेश को रद्द करने के परिणामस्वरूप, दूसरा प्रतिवादी तत्काल आत्मसमर्पण करेगा।
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ARTICLE IN ENGLISH:
POCSO | Supreme Court Rejects Bail Citing Love Affair Irrelevant Ground When Victim Is A Minor Girl
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