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Home हिंदी कानून क्या कहता है

भरण-पोषण का भुगतान न करने पर पुलिस FIR दर्ज कर सकती है, क्योंकि यह DV एक्ट के तहत संरक्षण आदेश का उल्लंघन है: मद्रास HC

Team VFMI by Team VFMI
July 10, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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voiceformenindia.com

Parents can reclaim property if children fail to provide promised care, rules Madras High Court

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मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान अपने फैसले में कहा है कि भरण-पोषण का भुगतान न करना डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट की धारा 18 के तहत सुरक्षा आदेश का उल्लंघन है और उस आधार पर FIR दर्ज करना वैध है। लाइव लॉ के मुताबिक, मदुरै पीठ के जस्टिस केके रामकृष्णन ने कहा कि घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं की सुरक्षा एक्ट की धारा 31 सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने और सुरक्षा आदेश के उल्लंघनकर्ता को विनियमित करने के लिए बनाई गई थी। अदालत ने भरण-पोषण राशि जमा न कर पाने को अपराध और गुनाह मानते हुए इस प्रावधान को जीवनरक्षक दवा बताया।

क्या है पूरा मामला?

हाई कोर्ट डीवी एक्ट की धारा 31 के तहत अपराध के लिए दर्ज FIR के आधार पर न्यायिक मजिस्ट्रेट, देवकोट्टई के समक्ष लंबित कार्यवाही को रद्द करने के लिए एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता पति ने 1989 में महिला से शादी की थी। शादी के बाद कपल की दो लड़कियां हुई थीं। कुछ विवादों के कारण, पत्नी ने डीवी एक्ट की धारा 18 और 19 के तहत याचिका दायर की और न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पत्नी को 3,000 रुपये का और बच्चों को 5,000 रुपये का भरण-पोषण देने के साथ-साथ उन्हें सुरक्षा देने का आदेश भी दिया। पति ने अदालत को सूचित किया कि अपील पर उसकी पत्नी को मिलने वाला गुजारा भत्ता रद्द कर दिया गया और बच्चों को दिए जाने वाले भत्ते की पुष्टि कर दी गई।

पति ने आगे कहा कि उसकी पत्नी ने डीवी एक्ट की धारा 31 के तहत एक शिकायत दायर की थी जिसमें दावा किया गया था कि वह भरण-पोषण का भुगतान नहीं कर रहा था, और इसके आधार पर विवादित कार्यवाही हुई। उसके वकील ने तर्क दिया कि भरण-पोषण का भुगतान न करने पर CrPC की धारा 125 या धारा 128 के तहत अवॉर्ड के निष्पादन के माध्यम से वसूली की जा सकती है। यानी या तो डिस्ट्रेंट वारंट या डिस्ट्रेस वारंट के माध्यम से और मासिक भरण-पोषण आदेश का अनुपालन न करने का प‌रिणाम सुरक्षा आदेश का उल्लंघन नहीं होगा।

हाई कोर्ट

हाई कोर्ट ने कहा कि डिस्ट्रेस वारंट और डिस्ट्रेंट वारंट के माध्यम से भरण-पोषण आदेश को लागू करने की बोझिल प्रक्रिया के कारण, त्वरित तरीके से भरण-पोषण राशि प्राप्त करने का उद्देश्य विफल हो रहा था। अदालत ने कहा कि इसी पृष्ठभूमि में विधायिका निर्धारित भरण-पोषण राशि पाने का इंतजार कर रही महिलाओं को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए डीवी एक्ट की धारा 31 के तहत दंडात्मक प्रावधान लाती है।

अदालत ने कहा, “विधानमंडल के पास वर्तमान डीवी एक्ट में दंडात्मक प्रावधान है, जिसका उद्देश्य भरण-पोषण अवॉर्ड की देरी से निष्पादन की कार्यवाही को दबाने और पीड़ित को आगे की गरीबी और आवारागर्दी से बचने के लिए त्वरित उपाय प्रदान करना है। कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण के निष्पादन को दंडात्मक क़ानून में बदलने का उद्देश्य सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना और महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा करना था।

इस प्रकार इसे आर्टिकल 15(3) द्वारा कवर किया जाएगा और आर्टिकल 39 के तहत प्रबलित किया जाएगा। इस प्रकार, उद्देश्यपूर्ण व्याख्या के सिद्धांत को लागू करते हुए अदालत ने कहा कि भरण-पोषण भत्ते का भुगतान न करना आर्थिक दुरुपयोग होगा। कोर्ट ने कहा कि डीवी एक्ट की नीचे निकाली गई धारा 2 (O) और 3 (iv) में उद्देश्यपूर्ण व्याख्या के उपरोक्त सिद्धांतों को लागू करके, यह न्यायालय बिना किसी अस्पष्टता के मानता है कि भरण-पोषणभत्ते का भुगतान न करना आर्थिक दुरुपयोग होगा और यह बहुत अच्छी तरह से सुरक्षा आदेश के उल्लंघन के दायरे में आता है।

अदालत केरल हाईकोर्ट के इस तर्क से भी असहमत था कि धारा 31 की इतनी व्यापक व्याख्या से अदालतों में बाढ़ आ जाएगी, और राय दी कि अदालतों में बाढ़ आने से केवल यह संकेत मिलेगा कि लोगों को न्यायपालिका पर विश्वास है जो एक अच्छा संकेत है। हालांकि, वर्तमान मामले में कोर्ट ने कहा कि आदमी नियमित रूप से भरण-पोषण का भुगतान कर रहा था, और इस प्रकार उचित जांच किए बिना मामला दर्ज करना सही नहीं था। इस प्रकार, अदालत ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही रद्द कर दी और याचिका स्वीकार कर ली।

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