पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana high court) ने अपने एक हालिया आदेश में 10 साल से अलग रहने के बाद भी पत्नी द्वारा तलाक के लिए सहमति नहीं देने के बावजूद एक पति को तलाक दे दिया है। दंपति की कोई संतान नहीं है और आर्थिक रूप से स्वतंत्र पत्नी को गुजारा भत्ता दिया गया है।
क्या है पूरा मामला?
इस जोड़े ने 2011 में शादी की थी। पति के अनुसार, शादी की शुरुआत से ही उसकी पत्नी का व्यवहार, आचरण और रवैया उसके एवं उसके परिवार के सदस्यों के प्रति अच्छा नहीं था। उसने यह भी दावा किया कि शादी के कुछ दिनों के बाद, उसकी पत्नी ने कहा कि उसकी जबरन शादी की गई थी और वह उसकी पसंद का नहीं था। उसने यह भी दावा किया कि वह छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करती थी। पति ने कहा कि वह गंदी भाषा में गाली देती थी और अपीलकर्ता को उसे और उसके परिवार के सदस्यों को झूठे और तुच्छ आपराधिक मामले में फंसाने की धमकी भी देती थी।
पत्नी ने पति के सभी आरोपों को झूठा बताया
महिला ने 2012 में अपना ससुराल छोड़ दिया था और तब से यह दंपति अलग रह रहा था। उसने पति के परिवार पर कई मामले भी दर्ज कराए थे। हालांकि, उन्हें सभी शिकायतों से बरी कर दिया गया था।
अमृतसर फैमिली कोर्ट
अक्टूबर 2016 में अमृतसर फैमिली कोर्ट ने जोड़े के बीच के विवाद को विवाहित जीवन पर सामान्य टूट-फूट बताते हुए तलाक के लिए आदमी की याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद पति ने तलाक के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाई कोर्ट का आदेश
इस विशेष वैवाहिक विवाद का फैसला करते हुए जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस अशोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि एक साथ रहना अनिवार्य अभ्यास नहीं है लेकिन विवाह दो पक्षों के बीच एक बंधन है। इसके बाद, उन्होंने एक मृत विवाह को भंग कर दिया जहां जोड़े को पहले दिन से समस्या थी और एक दशक से अलग रह रहे थे।
अदालत ने आगे कहा कि पत्नी एक सुरक्षित और आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिला होने के बावजूद विवाद को निपटाने के लिए तैयार नहीं थी। अदालत ने पाया कि उसे अपने जीवन में आगे बढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और वह इस बात पर अड़ी थी कि उसके पति को भी अपने जीवन में आगे नहीं बढ़ना चाहिए।
हाई कोर्ट ने दंपति के बीच विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के कई प्रयास किए लेकिन सब व्यर्थ हो गया। दोनों पक्षों को सुनने और रिकॉर्ड की जांच करने के बाद पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट गया था और उनके एक साथ आने या फिर से एक साथ रहने का कोई मौका नहीं था। पीठ ने कहा कि तलाक की डिक्री नहीं देना पक्षों के लिए विनाशकारी होगा। बेंच ने अमृतसर कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया और उन्हें तलाक दे दिया। कोर्ट ने पति को पत्नी के नाम से छह लाख रुपये का FD जमा करने का निर्देश दिया।
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