पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने हाल ही में एक कपल के तलाक को बरकरार रखा, क्योंकि महिला अपने पति को अपने माता-पिता से अलग रहने के लिए मजबूर करती थी और ऐसा करने से इनकार करने पर उसे छोड़ दिया था। पति ऑन रिकॉर्ड यह साबित करने में सक्षम रहा कि पत्नी उसे उसके माता-पिता से अलग रहने के लिए लगातार परेशान कर रही थी और उस पर जालंधर में अपना क्लिनिक खोलने के लिए जोर दे रही थी, जहां उसके माता-पिता रहते हैं। पत्नी ने ससुराल छोड़ दिया था।
क्या है पूरा मामला?
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, कपल की शादी नवंबर 1990 में ऊना में हिंदू रीति-रिवाजों के मुताबिक हुई थी। शादी के बाद दोनों पति-पत्नी की तरह साथ रहने लगे, लेकिन महिला ने संयुक्त परिवार में रहने से इनकार कर दिया। वह नहीं चाहती थी कि उसका पति हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के ओयल गांव में अपनी मेडिकल सर्विस शुरू करे, जहां उसका परिवार रहता था। जनवरी 1992 में गर्भवती होने पर महिला ने अपने पति को छोड़ दिया। उसने पंजाब के जालंधर जिले में अपने माता-पिता के पैतृक गांव हजारा में एक लड़के को जन्म दिया।
इसके बाद पति उपहार, मिठाई, कपड़े आदि के साथ हजारा गया और अपने ससुराल वालों से उसे अपने साथ जाने देने का अनुरोध किया। हालांकि, उसके माता-पिता ने एक अलग निवास की शर्त पर जोर दिया। 1996 में एक फैमिली समझौते के बाद महिला अपने पति और बेटे के साथ रहने के लिए तैयार हो गई, लेकिन अपने माता-पिता से अलग रहने की अपनी पुरानी मांग के लिए दबाव बनाने लगी।
सुप्रीम कोर्ट
कपल के तलाक को बरकरार रखते हुए जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस मनीषा बत्रा की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में, हाईकोर्ट ने उस व्यक्ति और उसके परिवार को उसकी पत्नी द्वारा एक आपराधिक मामले में झूठे फंसाए जाने का भी संज्ञान लिया, जिसमें वे बाद में बरी हो गए थे। जालंधर की एक फैमिली कोर्ट द्वारा पारित 15 अक्टूबर, 2015 के उस आदेश को चुनौती देने वाली महिला की याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसमें उसके पति की शादी तोड़ने की याचिका को अनुमति दी गई थी।
दोनों पक्षों की जांच करने के बाद, खंडपीठ ने पाया कि कपल के बीच विवाह असाध्य रूप से टूट गया था और उनके एक साथ आने या फिर साथ रहने का कोई मौका नहीं था। अदालत ने यह भी देखा कि महिला ने घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसे अपीलकर्ता-पत्नी की गैर-मौजूदगी के कारण खारिज कर दिया गया था। वह मुकदमे में लटकना चाहती थी।
पत्नी की अपील को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने जालंधर परिवार अदालत द्वारा दिए गए तलाक को बरकरार रखा, लेकिन पति को अपनी पूर्व पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 15 लाख रुपये देने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट के कुछ निर्णयों पर भरोसा करते हुए बेंच ने यह भी कहा कि यदि पार्टियां शुरुआत से ही एक-दूसरे के लिए साहचर्य के विवाह के मूल उद्देश्य को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं और लंबे समय तक अलग रहना विवाह के अपरिवर्तनीय टूटने के बराबर है।
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