दुष्कर्म से जुड़े एक मामले में सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में कहा कि यदि अभियुक्त के खिलाफ साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं तो अदालत सद्भावना पूर्वक विचार कर सकती है और रेप का मुकदमा समझौते के आधार पर खत्म हो सकता है। साथ ही कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि रेप के अपराध में यदि अभियुक्त के खिलाफ रिकॉर्ड पर कोई सबूत उपलब्ध नहीं है और पीड़िता ने भी अपने बयान में किसी प्रकार का आरोप नहीं लगाया है तो IPC की धारा 376 के तहत दर्ज दुष्कर्म के मुकदमे को समझौते के आधार पर समाप्त किया जा सकता है।
क्या है पूरा मामला?
दैनिक अखबार हिंदुस्तान की रिपोर्ट के मुताबिक, उपरोक्त आदेश जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने उत्तर प्रदेश के बरेली के फखरे आलम की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। याची के खिलाफ बरेली के बारादरी थाने में रेप और पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज था, जिस मामले में पुलिस चार्जशीट दाखिल कर चुकी है। उसके बाद सक्षम अदालत ने उस पर संज्ञान लेकर अभियुक्त को वारंट जारी कर दिया।
इसके बाद याची ने याचिका दाखिल कर चार्जशीट और सेशन कोर्ट से जारी वारंट को चुनौती दी। याची की ओर से कहा गया कि अभियुक्त के विरुद्ध कोई साक्ष्य नहीं है। पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष अपने बयान में कहा है कि वह अपनी मर्जी से आरोपी के साथ गई थी और अपनी इच्छा से उसके साथ शादी की है। दोनों पति-पत्नी के रूप में रह रहे हैं और दोनों पक्षों के बीच समझौता हो चुका है। पीड़िता की उम्र 18 साल से अधिक है। स्पेशल जज पॉक्सो एक्ट ने समझौते की पुष्टि की।
हाई कोर्ट
रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा कि सामान्यतया हाईकोर्ट को यौन अपराधों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, लेकिन विशेष परिस्थितियों में CrPC की धारा 482 के तहत प्राप्त शक्तियों के तहत अपराध की गंभीरता, यौन हमले के प्रभाव, समाज पर पड़ने वाले उसके प्रभाव, अभियुक्त के खिलाफ उपलब्ध सबूत आदि पर सदभावनापूर्वक तरीके से विचार किया जा सकता है।
कोर्ट के समक्ष मुख्य सवाल था कि पॉस्को एक्ट और IPC की धारा 376 के तहत दर्ज केस समझौते के आधार पर समाप्त किया जा सकता है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो एक्ट में यह स्पष्ट है कि पीड़िता की उम्र 18 साल से कम होनी चाहिए। इस मामले में उपलब्ध रिकॉर्ड से पता चलता है कि पीड़िता 18 साल से अधिक की है, इसलिए पॉक्सो एक्ट का कोई मामला नहीं बनता है।
इसके अलावा पीड़िता ने अपने बयान में यह भी कहा है कि आरोपी ने कोई यौन अपराध नहीं किया था और शादी के बाद दोनों पति पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे हैं। उसकी मां ने पांच लाख रुपये लेने के लिए फर्जी केस दर्ज कराया है।
मेडिकल टेस्ट में पीड़िता के शरीर पर कोई चोट नहीं पाई गई है और रिकॉर्ड में याची के खिलाफ कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने इस तथ्य पर गौर किए बिना रूटीन तरीके से चार्जशीट दाखिल कर दी। इसी के साथ अदालत ने याचिका स्वीकार करते हुए याची के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द कर दिया।
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