Sarvjeet Singh Bedi Case: क्या आपको 2015 का ‘दिल्ली का दरिंदा (Delhi ka Darinda)’ केस याद है? जसलीन कौर (Jasleen Kaur) नाम की एक महिला द्वारा दिल्ली में एक ट्रैफिक सिग्नल पर छेड़छाड़ का आरोप लगाने के बाद सर्वजीत सिंह बेदी (Sarvjeet Singh Bedi) पर ऐसा ही लेबल लगा दिया गया था।
हालांकि, चार साल बाद 2019 में सिंह को कोर्ट ने सम्मानपूर्वक बरी कर दिया। मामले में हाल ही में एक घटनाक्रम में दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने सिंह द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें शिकायतकर्ता महिला के खिलाफ आपराधिक जांच की मांग की गई थी।
क्या है पूरा मामला?
सेंट स्टीफंस कॉलेज की पूर्व छात्रा जसलीन कौर ने सर्वजीत सिंह बेदी पर साल 2015 में दिल्ली के तिलक नगर में ट्रैफिक सिग्नल पर उन्हें परेशान करने और गाली देने का आरोप लगाया था। इसके बाद सिंह पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 A (यौन उत्पीड़न) और 509 (किसी महिला की लज्जा का अपमान करने के इरादे से गलत शब्द, इशारा या कार्य करना) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
बाद में, 2019 में ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में सिंह को बाइज्जत बरी कर दिया था। हालांकि, उस समय तक युवक मीडिया और सोशल मीडिया ट्रायल के कारण दोष सिद्ध होने से ही पहले अपना सम्मान, प्रतिष्ठा और करियर खो चुका था। 2019 में सिंह को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा कि चश्मदीद गवाहों (जो अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन कर सकते थे), के गैर-परीक्षण ने अभियोजन के मामले पर गंभीर संदेह पैदा किया।
इसके बाद सिंह ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और कौर के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 340 के तहत मुकदमा चलाने की अपील की। सिंह कथित तौर पर झूठी जानकारी देने, झूठे सबूत देने और मुकदमे के दौरान उसके खिलाफ झूठे आरोप लगाने के लिए लड़की के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए हाई कोर्ट का रूख किया।
दिल्ली हाई कोर्ट
ट्रायल और अपीलीय दोनों न्यायालयों के अनुसार, सिंह का आवेदन खारिज कर दिया गया था क्योंकि कोर्ट की राय थी कि केवल संदेह के लाभ पर बरी होने पर धारा 195 आईपीसी और अन्य अपराध एवं धारा 340 सीआरपीसी के तहत प्रारंभिक जांच को आकर्षित नहीं करता है। अब, 19 सितंबर, 2022 के अपने हालिया आदेश में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी सिंह की अपील को खारिज करते हुए, दोनों निचली अदालतों द्वारा पारित दो आदेशों को बरकरार रखा है।
जस्टिस सुधीर कुमार जैन ने कहा कि सिंह की चिंता को “बहुत अच्छी तरह से समझा जा सकता है” क्योंकि शिकायतकर्ता ने इस घटना को मीडिया में चलावाया था और इससे उनकी प्रतिष्ठा का नुकसान हो सकता था। जस्टिस जैन ने कहा कि हालांकि, केवल प्रतिष्ठा की हानि धारा 340 Cr.P.C के तहत प्रावधानों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
याचिकाकर्ता मानहानि के लिए फाइल कर सकता है: HC
दिल्ली हाई कोर्ट ने सुझाव दिया कि सिंह को मानहानि के लिए उचित कानूनी कार्यवाही शुरू करने की स्वतंत्रता है। कोर्ट ने आवेदन को खारिज करते हुए कहा कि धारा 340 Cr.P.C के तहत दिए गए तथ्यों और मामले की परिस्थितियों के तहत बनाए रखने योग्य नहीं है। मामले को समाप्त करते हुए जस्टिस जैन ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को बरी करते हुए कोई निष्कर्ष नहीं दिया है कि प्रतिवादी नंबर 2 ने अदालत के समक्ष सुनवाई के दौरान शपथ पर झूठा बयान दिया है।
सु्प्रीम कोर्ट में देंगे चुनौती
याचिकाकर्ता की चिंता को प्रतिवादी संख्या के रूप में अच्छी तरह से समझा जा सकता है। घटना को मीडिया में प्रकाशित किया है जिससे याचिकाकर्ता की प्रतिष्ठा को नुकसान हो सकता है। वॉयस फॉर मेन इंडिया हिंदी के साथ बताचीत करते हुए सिंह का प्रतिनिधित्व करने वाले अमीश अग्रवाल ने अपना पक्ष रखा।
उन्होंने कहा कि हम माननीय दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले से असहमत हैं और भारत के माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इसे चुनौती देंगे। उन्होंने कहा कि बरी होने के तुरंत बाद, हमने झूठे आरोपों के लिए लड़की से मुआवजे का दावा करते हुए एक सिविल सूट भी दायर किया था, जो अभी भी लंबित है। हमें दोनों मामलों में न्याय की उम्मीद है।
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