रेप के एक आरोपी को मिली 10 साल की सजा खत्म करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा कि शादी करने का वादा तोड़ने के हर मामले को बलात्कार के तौर पर नहीं देखा जा सकता। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि कोई इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि आरोपी ने भले ही शादी का वादा किया हो, लेकिन कुछ परिस्थितियों के चलते उसे इनकार करना पड़ा हो। ऐसे में वादा तोड़ने को रेप केस ही नहीं माना जा सकता। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की ओर से शख्स को सुनाई गई 10 साल की कैद की सजा को माफ कर दिया।
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की निचली अदालत और हाई कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए राजधानी के नईम अहमद को शादी का वादे करके एक विवाहित महिला से शारिरिक संबंध बनाने के आरोप से बरी किया है। महिला ने अपने पति और तीन बच्चों को आरोपी शख्स के साथ रहने के लिए छोड़ दिया था। रेप का आरोपी व्यक्ति शादीशुदा था। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, महिला भी शादीशुदा थी और उसके तीन बच्चे हैं। महिला अपने पति और बच्चों को छोड़कर 2009 में अहमद के साथ भाग गई और 2011 में इस रिश्ते से उसका एक लड़का हुआ।
आरोपी और महिला पड़ोस में ही किराए पर रहते थे और दोनों के बीच संबंध बन गए। महिला कुछ वक्त बाद उस शख्स के गांव गई तो पता चला कि वह पहले से ही शादीशुदा है और उसके बच्चे भी हैं। इसके बाद भी वह महिला एक अलग घर में उसके साथ रहती रही। 2014 में महिला ने अपने पति से आपसी सहमति से तलाक ले लिया और बच्चों को भी छोड़कर चली गई। हालांकि, एक साल बाद ही 2015 में उसने आरोपी के खिलाफ रेप की शिकायत दर्ज करा दी।
महिला का तर्क
महिला की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि निचली अदालत और हाई कोर्ट ने सही निष्कर्ष निकाला था कि अहमद ने शादी का वादा यौन संबंध बनाने के लिए दुर्भावनापूर्ण इरादे से किया था। वहीं, अहमद के वकील राज के चौधरी ने कहा कि महिला की मोटी रकम की मांग को पूरा करने में असमर्थ रहने के बाद बलात्कार की शिकायत दर्ज की गई थी।
हाई कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरोप लगाने वाली महिला शादीशुदा थी और तीन बच्चों की मां थी। वह पूरी तरह से परिपक्व थी और उसे मालूम था कि इस तरह के रिश्ते में जाने का क्या अंजाम हो सकता है। यदि आरोपी के साथ महिला के रिश्तों पर गौर किया जाए तो पता चलता है कि उसने अपने पति और तीन बच्चों को ही धोखा दिया था।
पीठ ने कहा कि वह शादीशुदा होने के बावजूद भी उसके साथ रहने चली गई थी। इसी दौरान वह आरोपी से गर्भवती हो गई। इसके बाद भी उसने कोई शिकायत नहीं की। यहां तक कि जब उसे पता चला कि उस शख्स की पहले ही शादी हो चुकी है और बच्चे भी हैं, तब भी वह उसके साथ ही रही।
अदालत ने कहा कि पति से इस दौरान तलाक भी ले लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला ने रेप का आरोप तब लगाया, जब दोनों के बीच किसी बात को लेकर मतभेद पैदा हो गए। वह आरोपी से बड़ी रकम चाहती थी, जो नहीं मिली तो उसने रेप का केस दर्ज करा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे में यह मामला रेप का नहीं बनता।
रिपोर्ट के मुताबिक, इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अहमद को बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के समवर्ती आदेशों को बरकरार रखा, जिसमें उसे एडल्ट्री संबंध के माध्यम से पैदा हुए बच्चे के रखरखाव के लिए महिला को 5 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था।
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