केंद्र सरकार ने गुरुवार को संसद को बताया कि समान नागरिक संहिता (uniform civil code- UCC) के मुद्दे पर कानून बनाने के लिए राज्य सरकारें स्वतंत्र हैं। कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने एक सवाल के जवाब में राज्यसभा को बताया कि राज्यों को एक समान नागरिक संहिता (UCC) को सुरक्षित करने के अपने प्रयास में उत्तराधिकार, विवाह और तलाक जैसे मुद्दों को तय करने वाले व्यक्तिगत कानून बनाने का अधिकार है।
राज्यसभा में CPM सांसद जॉन ब्रिट्स के एक सवाल का जवाब देते हुए, जिन्होंने सरकार से पूछा था कि क्या वह इस मामले में राज्यों की प्रगति के बारे में जानते हैं और यदि हां, तो उनकी प्रतिक्रिया क्या थी, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि केंद्र इस बात से अवगत था कि राज्य UCC पर आगे बढ़ रहे हैं।
कानून मंत्री ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 44 प्रदान करता है कि राज्य पूरे देश में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुरक्षित करने का प्रयास करेगा। व्यक्तिगत कानून जैसे निर्वसीयतता और उत्तराधिकार, वसीयत, संयुक्त परिवार और विभाजन, विवाह और तलाक सातवीं अनुसूची की सूची-III-समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 से संबंधित हैं और इसलिए, राज्यों को भी उन पर कानून बनाने का अधिकार है।
बता दें कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) शासित उत्तराखंड समान नागरिक संहिता कानून बनाने के लिए एक समिति बनाने वाला पहला राज्य था। सुप्रीम कोर्ट की रिटायर जज रंजना देसाई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय समिति इस विषय पर हितधारकों को शामिल कर रही है।
BJP ने UCC को हाल ही में समाप्त हुए गुजरात और हिमाचल प्रदेश में अपने चुनावी वादे में शामिल किया था। गुजरात में सीएम भूपेंद्र पटेल इसे लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। पार्टी को लगता है कि बीजेपी की ऐतिहासिक जीत के पीछे प्रमुख कारकों में से UCC भी एक था। गुजरात में बीजेपी विधायक दल के नेता चुने जाने के बाद, पटेल की यूसीसी कार्यान्वयन से संबंधित पहली घोषणा की।
पिछले हफ्ते, बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने राज्यसभा में एक निजी सदस्य का विधेयक पेश किया, जिससे जरूरत पड़ने पर सरकार के लिए विधेयक को कानून में बदलने का रास्ता खुल गया। राज्यसभा के नेता पीयूष गोयल ने कांग्रेस, वामपंथी और अन्य विपक्षी दलों के तीव्र प्रतिरोध के बीच विधेयक का जोरदार बचाव किया था।
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