सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपने एक हालिया फैसले में पति के पक्ष में दिए गए तलाक के फरमान को खारिज करते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि यहां की सामाजिक स्थिति को देखते हुए भारत में महिलाओं के लिए वैवाहिक स्थिति महत्वपूर्ण है। लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट की खंडपीठ अपीलकर्ता पत्नी द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें परित्याग के आधार पर पति के पक्ष में तलाक की डिक्री जारी की गई थी।
क्या है पूरा मामला?
सुनवाई के दौरान, अपीलकर्ता पत्नी की ओर से पेश वकील पुरुषोत्तम शर्मा त्रिपाठी ने शीर्ष अदालत को बताया कि हाईकोर्ट ने विशेष रूप से यह नोट किया था कि प्रतिवादी पति के साथ कोई क्रूरता नहीं हुई है और पत्नी ने अपनी ससुराल को अपनी मर्जी से नहीं छोड़ा था। इसलिए, हाईकोर्ट शादी के विघटन के लिए डिक्री पारित करने के लिए आगे नहीं बढ़ सकता था। अपीलकर्ता की तरफ से ये तर्क प्रतिवादी पति के पास वापस लौटने के लिए अपनी रुचि व्यक्त करते हुए दिए गए थे। हालांकि, लाइव लॉ के मुताबिक, प्रतिवादी पति की ओर से पेश वकील शिशिर सक्सेना ने इन दावों का खंडन किया।
सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि 18 साल से अलग रह रहे दंपत्ति के लिए अब साथ रहना असंभव हो सकता है। लेकिन, जिस तरह से समाज महिलाओं के साथ व्यवहार करता है, उसे देखते हुए विवाह और विवाह की स्थिति की अवधारणा काफी महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के लिए शादी का बहुत महत्व है। खासतौर पर जिस तरह से उनके साथ (समाज में) व्यवहार किया जाता है। वकील शिशिर ने कहा कि पति अब एक ”साधु” है और अपनी पत्नी के साथ वैवाहिक संबंध में वापस नहीं लौट सकता है।
जस्टिस भट ने पूछा कि अगर आपने संसार को त्याग दिया है, तो आपने सब कुछ त्याग दिया है, ठीक है ना? एक संक्षिप्त चर्चा के बाद, पीठ ने आगे कहा कि हम तलाक के फरमान को रद्द कर देंगे। आपको (पति को) इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह भी कहा कि 5 लाख रुपये की राशि, जो कि अपीलकर्ता पत्नी को हाईकोर्ट के निर्देश के अनुसार पहले ही भुगतान की जा चुकी है, उसे वैसे ही छोड़ दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि वह, 5 लाख, जो कुछ भी आपने उसे दिया है, उसे उसका आनंद लेने दें। एक तरह की अनुग्रह राशि के रूप में…। उसने कोई अन्य मांग नहीं की है। क्या यह ठीक है?
इसके जवाब में वकील शिशिर ने कहा,”नो मिलॉर्ड।” पीठ ने आगे कहा कि समाधान खोजें, हम ऐसा नहीं कर सकते। जब तक आप साथ नहीं आते और कुछ नहीं करते। पत्नी की ओर से पेश वकील ने कहा कि हाईकोर्ट ने विवाह के अपरिवर्तनीय टूटने के सिद्धांत के तहत तलाक की अनुमति दी है। हाईकोर्ट के आदेश में कहा है कि पक्षकार अलग-अलग रह रहे हैं और इसलिए, इस पर पर्दा डालना आवश्यक है।
भरण-पोषण
भरण-पोषण के संबंध में शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी भी मामले में भरण-पोषण, तलाक के बाद भी, हमें बनाए रखना चाहिए, और भरण-पोषण का लेवल बहुत बढ़िया रकम नहीं है। इसलिए, उस पहलू पर, किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। जब वकील ने मध्यस्थता का सुझाव दिया, तो अदालत इसके लिए उत्सुक नहीं थी। कोर्ट ने कहा कि कोई मध्यस्थता नहीं। बस इतना ही काफी है। पति के वकील ने अदालत को सूचित किया कि वह उसके/पत्नी के साथ रहने के लिए तैयार नहीं है।
इस पर कोर्ट ने दोहराया कि नहीं, हम ऐसा नहीं कह रहे हैं। हम पक्षकारों को मजबूर नहीं कर सकते। लेकिन उसे एक विवाहित महिला होने का दर्जा दें। वकील शिशिर ने हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप न करने के लिए अदालत को मनाने के प्रयास में कहा कि मैं पुनर्विवाह नहीं करूंगा। इस पर कोर्ट ने कहा कि भले ही आप पुनर्विवाह न करें। लेकिन आपकी (वैवाहिक) स्थिति बहाल होने के बाद, आप अब शादी नहीं कर सकते।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि त्रिपाठी के अनुसार, हाईकोर्ट द्वारा दिए गए स्पष्ट निष्कर्ष के मद्देनजर कि प्रतिवादी पति ने किसी भी क्रूरता का सामना नहीं किया था और अपीलकर्ता पत्नी ने अपनी मर्जी से ससुराल नहीं छोड़ा था, हाईकोर्ट विवाह के विघटन के लिए तलाक की डिक्री पारित करने के लिए आगे नहीं बढ़ सकता था। इस दलील से सहमत होते हुए, हम इस अपील को स्वीकार करते हैं और हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश को रद्द करते हैं और ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय और डिक्री को बहाल करते हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि 5 लाख रुपये जो पहले ही दिए जा चुके हैं, उन्हें लिया जा सकता है और अपीलकर्ता पत्नी को भुगतान किए जाने वाले भरण-पोषण के लिए समायोजित किया जा सकता है।
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