पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि ‘स्वयंवर’ यानी अपनी पसंद से शादी करना कोई आधुनिक घटना नहीं है और इसकी जड़ें प्राचीन इतिहास में खोजी जा सकती हैं, जिसमें रामायण महाभारत जैसी पवित्र पुस्तकें भी शामिल हैं। लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस जगमोहन बंसल की पीठ ने यह कहते हुए कि आर्टिकल 21 इस मानवाधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में लागू करता है, आरोपी व्यक्ति के खिलाफ लड़की का अपहरण करने के आरोप में दर्ज FIR रद्द कर दी।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, हाई कोर्ट टेकचंद की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने IPC की धारा 363 और 366-A के तहत लड़की के पिता द्वारा उसके खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने की मांग करते हुए अदालत का रुख किया। याचिकाकर्ता पर आरोप लगाया गया कि उसने लड़की को शादी के बहाने उसे बहला-फुसला कर भगाया।
दूसरी ओर, टेकचंद (याचिकाकर्ता) ने अदालत के समक्ष अपना तर्क रखते हुए बताया कि उसने और प्रतिवादी नंबर 3 (लड़की) ने जुलाई 2019 में शादी की और उनके दो बच्चे हैं। राज्य ने इस तथ्य पर विवाद नहीं किया। उसकी तरफ से यह भी प्रस्तुत किया गया कि वे दोनों अपने जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अदालत गए।
हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के प्रतिनिधित्व पर ध्यान देने और कानून के अनुसार कार्य करने के लिए एसएसपी मुक्तसर साहिब को निर्देश के साथ मामला निपटाया। अदालत ने देखा कि याचिकाकर्ता ने पहले ही लड़की से शादी कर ली है और वे दोनों खुशी-खुशी साथ रह रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्य को विधिवत विवाहित जोड़े के जीवन में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।
अदालत ने कहा कि दोनों पक्ष वयस्क हैं और उन्होंने अपने माता-पिता की इच्छा के खिलाफ विवाह किया और वे खुशी-खुशी साथ रह रहे हैं। इसलिए अदालतों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों सहित किसी को भी उनकी गलती के बिना उनके जीवन को परेशान करने का अधिकार नहीं है।
पीठ ने आगे कहा, “उन्हें अपने जीवन को अपने तरीके से जीने का अधिकार है। उनके दो बच्चे हैं। लंबित आपराधिक मामले के साथ कोई भी खुशहाल जीवन नहीं जी सकता। राज्य को विधिवत विवाहित जोड़े के जीवन में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। आपराधिक कार्यवाही के जारी रहने से न केवल याचिकाकर्ता का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा, बल्कि प्रतिवादी नंबर 3 और उनके बच्चों के जीवन में भी अशांति की पूरी संभावना है।”
कोर्ट ने आगे ने टिप्पणी की, “आपराधिक कार्यवाही के जारी रहने से न केवल याचिकाकर्ता का जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा, बल्कि प्रतिवादी नंबर 3 और उनके बच्चों के जीवन में भी अशांति की पूरी संभावनाएं हैं। हमारा राज्य कल्याणकारी राज्य है। हमारे देश में शहरी आबादी के छिटपुट मामलों को छोड़कर, यह आदमी ही है, जो कमा रहा है और अपनी पत्नी और बच्चों की देखभाल कर रहा है।”
बता दें कि भारतीय संस्कृति में जाति और धर्म के बावजूद, विवाह न तो समझौता है और न ही अनुबंध, बल्कि यह दो परिवारों की पवित्र गांठ है, न्यायालय ने इस प्रकार कहा, “यह विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों का भौतिक मिलन नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र संस्था है, जहां दो परिवार एक हो जाते हैं। विवाह के महत्व को इस तथ्य से और समर्थन मिलता है कि बिना विवाह के एक जोड़े से बच्चा नहीं होता। जैसा कि विधिवत विवाहित जोड़े से बच्चे के रूप में पहचाना जाता है।” इसके साथ ही उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने विचाराधीन FIR को रद्द करने वाली याचिका को अनुमति दे दी।
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