दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में पीड़िता द्वारा Cr.P.C. की धारा 164 के तहत दर्ज कराए गए बयान में यह बताए जाने के बावजूद कि आरोपी के साथ उसके संबंध सहमति से थे, आरोपी व्यक्ति के खिलाफ पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत आरोप तय किए। लाइव लॉ के मुताबिक, उक्त मामले में हाईकोर्ट ने देखा कि कानून में कोई संशोधन किए जाने तक उसके हाथ बंधे हुए हैं। हालांकि, यह वांछनीय हो सकता है कि किशोर संबंधों के मामलों को अलग स्तर पर निपटाया जाए।
क्या है पूरा मामला?
हाई कोर्ट दिल्ली पुलिस द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। उक्त आदेश में बलात्कार के आरोपी को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363 और 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोपमुक्त किया गया था। FIR 2017 में IPC की धारा 363 के तहत दर्ज की गई, जो पीड़िता के पिता द्वारा दर्ज कराई गई गुमशुदगी की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई, जब पीड़िता 14 साल की थी।
हालांकि, पीड़िता खुद पुलिस स्टेशन गई और जांच अधिकारी को सूचित किया कि वह आरोपी को पसंद करने लगी है और उसके साथ यह कहकर चली गई कि वह अपने रिश्तेदार के घर जा रही है, लेकिन उसके साथ एक दोस्त के घर में रही और वहीं उन्होंने शादी करने की योजना बनाई। Cr.P.C. की धारा 164 के तहत दर्ज अपने बयान में उसने कहा कि वह कई मौकों पर स्वेच्छा से आरोपी के साथ गई और उसके साथ उसके संबंध सहमति से बने।
अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया किया कि निचली अदालत यह मानने में विफल रही कि घटना के समय पीड़िता की उम्र केवल 14 साल थी। एमएलसी के अनुसार उसका हाइमन “फटा” पाया गया। यह भी तर्क दिया गया कि ट्रायल कोर्ट ने इस बात की सराहना नहीं की कि नाबालिग की सहमति का कोई महत्व नहीं है और उसके बयान के तथ्य को Cr.P.C. की धारा 164 के तहत दर्ज किया गया। दूसरी ओर, अभियुक्तों के वकील ने प्रस्तुत किया कि निचली अदालत ने स्पष्ट आदेश पारित किया और निर्वहन के लिए पर्याप्त कारण दिए।
हाई कोर्ट
लीगल खबरों से जुड़ी वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि इसलिए यह वांछनीय हो सकता है कि किशोर मोह और स्वेच्छा से एक-दूसरे के साथ रहने, एक-दूसरे के साथ भाग जाने या संबंध बनाए रखने के मामले, जैसे कि वर्तमान मामला, को अलग स्तर पर निपटाया जाता है। हालांकि, यहां तब तक न्यायालय के हाथ बंधे हुए हैं जब तक संसद द्वारा इसमें कोई संशोधन नहीं किया जाता है। साथ ही तब तक आरोपी व्यक्ति पर आरोप तय किए जाएं, यदि उचित समझा जाए।
जस्टिस शर्मा ने आरोपियों के खिलाफ IPC की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत आरोप तय करते हुए कहा कि पॉक्सो एक्ट को पढ़ने मात्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि यौन संबंध के लिए सहमति की उम्र 18 साल है। अदालत ने कहा कि इसी तरह आईपीसी की धारा 375 को पढ़ने से यह भी स्पष्ट होता है कि 18 साल से कम उम्र की नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध बलात्कार की कैटेगरी में आता है, भले ही नाबालिग ने इसके लिए अपनी सहमति दी हो। यह देखते हुए कि पीड़िता ने आरोपी को सभी आरोपों से पूरी तरह से मुक्त कर दिया, अदालत ने हालांकि कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड में रखी गई सामग्री से पता चलता है कि घटना की तारीख पर पीड़िता की उम्र लगभग साढ़े 14 साल थी, जिसे रिकॉर्ड भी किया गया।
अदालत ने आगे कहा कि इस मामले में चूंकि पॉक्सो एक्ट की धारा 2 (D) के अर्थ में पीड़िता ‘बच्चा’ है, इसलिए शारीरिक संबंध के लिए पीड़िता की सहमति का कोई महत्व नहीं है। यह प्रतिवादी/आरोपी के लिए किसी भी तरह की मदद नहीं हो सकती है। इसमें कहा गया कि पीड़िता ने स्पष्ट रूप से कहा कि उसके और प्रतिवादी के बीच संभोग होने का तथ्य उसकी सहमति से था, लेकिन चूंकि 18 साल से कम उम्र के नाबालिग की सहमति को सहमति नहीं माना जाता, इसलिए यौन संभोग प्रथम दृष्टया पॉक्सो एक्ट और आईपीसी की धारा 375 के दायरे में आरोप तय करने के उद्देश्य से आएगा।
अदालत ने हालांकि देखा कि IPC की धारा 363 के तहत दंडनीय अपराध अभियुक्त के खिलाफ नहीं बनाया गया, यह देखते हुए कि मामले में लुभाने या ले जाने के कार्य का आवश्यक घटक अनुपस्थित है। इसने कहा कि रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है या पीड़िता की ओर से किसी भी तरह का आरोप है कि यह आरोपी है, जिसने उसे अपना घर छोड़ने के लिए बहकाया, फुसलाया या प्रेरित किया या उसे अपने कानूनी संरक्षकता से बाहर कर दिया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रकार, पूर्वोक्त के मद्देनजर वर्तमान याचिका को इस हद तक अनुमति दी जाती है कि IPC की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए प्रतिवादी/अभियुक्तों के खिलाफ आरोप तय किए जाएं। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि अदालत द्वारा की गई टिप्पणियां मामले का फैसला करने के उद्देश्य से हैं और निचली अदालत इससे प्रभावित नहीं होगी।
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