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Home हिंदी कानून क्या कहता है

तलाकशुदा जीवनसाथी के साथ ‘अतिथि देवो भव’ जैसा व्यवहार करें, बच्चे के सामने दया और सहानुभूति दिखाएं: मद्रास हाई कोर्ट

Team VFMI by Team VFMI
July 22, 2022
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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voiceformenindia.com

Madras High Court reduces life sentence of woman who set her minor daughter on fire

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एक तलाकशुदा कपल के बीच मुलाकात के अधिकारों से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) ने हाल ही में इस बात पर जोर दिया कि जिन पत्नियों के रास्ते अलग हो गए हैं, उन्हें बच्चे के सामने एक-दूसरे (पति-पत्नी) के साथ दया और सहानुभूति के साथ व्यवहार करना चाहिए। साथ ही कोर्ट ने अलग रह रहीं पत्नियों को सलाह देते हुए कहा कि तलाकशुदा जीवनसाथी के साथ ‘अतिथि देवो भव’ जैसा व्यवहार करें। बता दें कि हमारे यहां अतिथि यानी मेहमान को भगवान का दर्जा दिया जाता है।

क्या है मामला?

दरअसल, जस्टिस कृष्णन रामासामी ने उस मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की जिसमें एक बच्चे के पिता को सप्ताह के दौरान निर्धारित समय के लिए नाबालिग को अपने आवास पर ले जाने की अनुमति दी गई थी। हालांकि, पत्नी ने इसे लागू करने में कठिनाई व्यक्त की और संशोधन की मांग की। अदालत ने पिता को हर शुक्रवार और शनिवार की शाम को मां के आवास पर बच्चे से मिलने की अनुमति देने के आदेश में संशोधन किया।

यह निर्देश दिया गया था कि पति-पत्नी आदेशों का पालन करें और यहां तक कि बच्चों को दूसरे माता-पिता के साथ समय बिताने के लिए मनाएं, यदि वे माता-पिता के अलगाव के परिणामस्वरूप नहीं चाहते हैं। जज ने आगे कहा कि यदि बच्चे की कस्टडी रखने वाले पति या पत्नी की ओर से आदेशों की अवहेलना की जाती है तो कोर्ट के आदेश के गैर-अनुपालन के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा और अंततः यह माना जाएगा कि वह बच्चों की कस्टडी बनाए रखने में असमर्थ है।

हाई कोर्ट

जस्टिस कृष्णन रामासामी ने उपरोक्त टिप्पणी करते हुए कहा कि वे बच्चे से मिलने आए एक पति या पत्नी को एक दूसरे के साथ दुर्व्यवहार करने के कई उदाहरण देखे हैं। जज ने कहा कि पति या पत्नी अन्य किसी के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे। हालांकि, व्यक्तिगत उदासीनता के कारण पत्नी/पति के रूप में एक दूसरे का सम्मान नहीं करेंगे। कोर्ट ने कहा कि कम से कम उन्हें पत्नी/पति ना सहीं, लेकिन अतिथि के रूप में व्यवहार करें, क्योंकि हमारे रीति-रिवाजों और व्यवहार में अतिथि को भगवान माना जाता है।

बच्चों पर पड़ता है बुरा असर

लीगल वेबसाइट बार एंड बेंच के मुताबिक, अदालत की राय थी कि एक माता-पिता जो एक बच्चे को दूसरे माता-पिता से नफरत करना या डरना सिखाता है, उस बच्चे के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर और लगातार खतरे का प्रतिनिधित्व करता है।

कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक बच्चे को माता-पिता दोनों के साथ एक असुरक्षित और प्रेमपूर्ण संबंध का अधिकार और आवश्यकता है। पर्याप्त औचित्य के बिना, एक माता-पिता द्वारा इस अधिकार से वंचित होना, अपने आप में बाल शोषण का एक रूप है… घृणा एक भावना नहीं है जो स्वाभाविक रूप से आती है अधिकांश बच्चों को इसे पढ़ाना होगा।

बच्चों को माता-पिता का प्यार पाने का अधिकार

जज ने कहा कि प्रत्येक बच्चे को अपने माता-पिता दोनों के पास रहने और दोनों का प्यार एवं स्नेह प्राप्त करने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि पति-पत्नी के बीच जो भी मतभेद हों, लेकिन बच्चे को दूसरे पति या पत्नी की संगति से वंचित नहीं किया जा सकता है।

अदालत ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 29 जुलाई को सूचीबद्ध करते हुए पत्नी को निर्देश दिया कि वह पति को नाश्ता और रात का खाना उपलब्ध कराकर आतिथ्य दिखाएं और अपने बच्चे के साथ वही खाएं। कोर्ट ने कहा कि जिसका अर्थ है पति और पत्नी पूरी तरह से एक स्वस्थ वातावरण बनाएं ताकि बच्चा खुश महसूस करे और अपने माता-पिता के साथ बिताकर पलों का आनंद उठाए।

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Tags: child custodyMadras High Courtshared parentingतलाक का मामला
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VFMI ने पुरुषों के अधिकार और लिंग पक्षपाती कानूनों के बारे में लेख प्रकाशित किए.

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