उत्तर प्रदेश (UP) से एक ऐसा हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जहां एक दिव्यांग शख्स जिंदा महिला की हत्या के आरोप में दो साल तक जेल में रहा। यह मामला यूपी के उन्नाव कहा है, जहां शादीशुदा महिला की हत्या में फंसाए गए दिव्यांग को कोर्ट ने अब दोषमुक्त करार देते हुए बरी कर दिया है। आरोपी युवक ने इस फर्जी केस में साल 2018 से 2020 तक दो साल तक जेल में रहा। इसके बाद से वह जमानत पर बाहर था।
क्या है पूरा मामला?
देनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला सदर कोतवाली क्षेत्र के जुराखनखेड़ा का है। योगेंद्र कुमार अवस्थी ने थाना कोतवाली पर 20 मार्च 2018 को एक लिखित तहरीर दी थी। जिसमें बताया था कि उसकी 23 वर्षीय पत्नी श्रद्धा देवी 8 मार्च 2018 को इंटर की परीक्षा देने गई थी, जो वापस घर नहीं लौटी। काफी तलाश के बाद पता चला कि पड़ोस में रहने वाले दोस्त प्रमोद कुमार वर्मा के साथ वह चली गई है। पुलिस ने शिकायत दर्ज कर खोजबीन शुरू की।
महिला का जला हुआ शव मिला
करीब एक महीने बाद 2 अप्रैल 2018 को आसीवन थाना क्षेत्र के शेरपुरकला गांव के बाहर नहर के पास एक महिला का जला शव मिला था। जिस पर प्रधान कृष्णपाल यादव की तरफ से अज्ञात लोगों पर हत्या की रिपोर्ट आसीवन थाना में दर्ज कराई गई। शव जला होने से मौत की वजह स्पष्ट नहीं हो पाई। डॉक्टरों ने DNA सैंपल सुरक्षित किया था। 27 मई 2018 को मृतका की चूड़ी, कपड़े एवं फोटो से योगेंद्र और उसके परिजनों ने शव की पहचान श्रद्धा गुप्ता के रूप में की।
पड़ोसी पर लगा हत्या का आरोप
बाद में पति ने पड़ोस के दिव्यांग प्रमोद कुमार वर्मा पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप लगाया। साथ ही सबूत मिटाने के उद्देश्य से शव को कहीं और ले जाकर जलाने का भी आरोप लगाया। बाद में आसीवन पुलिस ने सदर कोतवाली में दर्ज केस को भी मुकदमे सें संबंध में जोड़ दिया। आसीवन थाना के तत्कालीन विवेचक प्रमोद वर्मा ने 9 जून 2018 को आरोपी प्रमोद कुमार वर्मा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
DNA रिपोर्ट से हुआ बड़ा खुलासा
पुलिस ने 3 सितंबर 2018 को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किया था। साल 2020 में मौजूदा SO राजेश सिंह ने मृत महिला के DNA सैंपल का मिलान कराने के लिए माता पिता का DNA सैंपल लेकर जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा था। हालांकि, डीएनए रिपोर्ट मैच नहीं हो सका, जिसके बाद यह मामला उलझ गया। पुष्टि हो गई कि शव श्रद्धा का नहीं था। वह किसी और महिला का शव था। इसके बाद पुलिस की अपील पर अक्टूबर 2020 में प्रमोद वर्मा को जमानत मिल गई।
जिंदा पाई गई महिला
इस मामले की पुलिस ने नए सिरे से जांच शुरू की। उसी समय 2020 में श्रद्धा के नाम का ATM घर पहुंचा तो परिजन चौंक गए। दरअसल, श्रद्धा महाराष्ट्र के एक नर्सिंग होम में नौकरी कर रही थी। श्रद्धा ने एक्सिस बैंक के ATM के लिए अप्लाई किया था। इसमें उसने गलती से उन्नाव से बना आधार कार्ड लगा दिया। आधार कार्ड में उन्नाव वाले घर का पता होने से ATM उसके घर पहुंच गया। परिजनों ने पुलिस को इसके बारे में सूचित किया, जिसके बाद पुलिस श्रद्धा की तलाश में लग गई। श्रद्धा किसी काम से महाराष्ट्र से ट्रेन से उन्नाव आ रही थी, तभी पुलिस ने उसे कानपुर सेंट्रल से हिरासत में ले लिया और मामले का खुलासा किया। महिला के जिंदा पाए जाने के बाद बुधवार को अपर सत्र न्यायालय ने दिव्यांग प्रमोद कुमार वर्मा को दोषमुक्त करार देते हुए बरी कर दिया। साथ ही विवेचक तत्कालीन SO सियाराम एवं थानाध्यक्ष आसीवन जयशंकर को विवेचना में बरती गई लापरवाही का दोषी ठहराया। अधिकारी के खिलाफ अब विभागीय कार्रवाई होगी।
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