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Home हिंदी कानून क्या कहता है

शादी के 7 साल के भीतर ससुराल में पत्नी की अप्राकृतिक मौत पति को दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराने के लिए काफी नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Team VFMI by Team VFMI
April 26, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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voiceformenindia.com

Promotion of women officers: Supreme Court says it cannot run affairs of Indian Army

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि शादी के महज सात साल के भीतर ससुराल में अप्राकृतिक परिस्थितियों में पत्नी की मौत पति को दहेज हत्या के लिए दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। लाइव लॉ के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने कहा, “शादी के सात साल के भीतर वैवाहिक घर में मृतक की अस्वाभाविक मौत होना ही आरोपी को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304B और 498A के तहत दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।” इसके साथ ही जस्टिस एएस ओक और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने IPC की धारा 304B, 498A और धारा 201 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया। हालांकि, इस सजा को ट्रायल कोर्ट और उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा बरकरार रखा गया था।

क्या है पूरा मामला?

महिला साल 1993 से (जब अपीलकर्ता और मृतका का शादी हुआ था) अपने ससुराल में रह रही थी। 1995 में मृतका के पिता ने स्थानीय थाने में दहेज हत्या का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई। उसने अपनी बेटी के ससुराल वालों द्वारा की जाने वाली दहेज की मांग के बारे में डिटेल्स जानकारी दी। पिता ने आगे दावा किया कि उसकी बेटी को उसके पति (अपीलकर्ता), देवर और सास द्वारा पीटा गया और गला दबाकर मार डाला गया। साथ ही उन्होंने पिता को बताए बिना उसके शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया।

ट्रायल कोर्ट

जांच के बाद पुलिस ने तीनों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किया गया। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें IPC की धारा 304B, 498A और 201 के तहत दोषी ठहराया। ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को IPC की धारा 304B के तहत 10 साल, धारा 498A के तहत 2 साल और धारा 201 के तहत 2 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई।

हाई कोर्ट

हालांकि, इसके बाद अपील में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने देवर और सास की दोषसिद्धि और सजा को सभी आरोपों से बरी करते हुए रद्द कर दिया। वहीं, IPC की धारा 304B के तहत अपीलकर्ता की सजा की अवधि 10 से घटाकर 7 साल कर दी गई।

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि IPC की धारा 304B और 498A के तहत अपीलकर्ता की सजा शादी के 7 साल के भीतर दहेज हत्या के बारे में अनुमान लगाती है। IPC की धारा 304B, 498A के अवलोकन पर इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 113B और दहेज मृत्यु से संबंधित निर्णय को देखते हुए अदालत ने यह जांचना उचित समझा कि क्या वर्तमान मामले में अपीलकर्ता के खिलाफ अनुमान लगाया जा सकता है। इस प्रकार अपने मामले को साबित करने के लिए उस पर आरोप लगाया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि दाह संस्कार के समय मृतका के माता-पिता मौजूद नहीं होने के बावजूद उसकी नानी और दो मामा मौजूद थे, लेकिन उन्होंने उस दौरान न तो कोई मुद्दा उठाया और न ही पुलिस को सूचित किया। कोर्ट ने कहा कि दहेज मृत्यु के मामलों में क्रूरता और उत्पीड़न मृत्यु से ठीक पहले होना चाहिए। हालांकि, वर्तमान मामले में मृतका के पिता की गवाही ने उसकी मौत से ठीक पहले दहेज की मांग के संबंध में कुछ भी प्रकट नहीं किया। मृतका के पिता द्वारा दहेज की मांग के जो भी मामले सामने रखे गए, वे काफी पुराने हैं।

अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों के अवलोकन के बाद शीर्ष अदालत ने कहा कि दहेज के कारण अपीलकर्ता या उसके परिवार के किसी सदस्य द्वारा मृतक की क्रूरता या उत्पीड़न के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया। मोटरसाइकिल और जमीन की केवल मांगें थीं, जो मृत्यु से बहुत पहले की गईं। इसके साथ ही कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि पीड़ित के नेतृत्व में पूर्वोक्त साक्ष्य इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 304B या IPC की धारा 113B के तहत अनुमान लगाने के लिए पूर्व-आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं। यहां तक कि IPC की धारा 498A के तत्व भी उसी कारण से नहीं बनाए गए हैं, क्योंकि मृतक की मृत्यु से ठीक पहले उसके साथ क्रूरता और उत्पीड़न का कोई सबूत नहीं है।

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