उत्तर प्रदेश की एक ट्रायल कोर्ट (Trial Court from Uttar Pradesh) ने 28 अगस्त, 2023 के अपने आदेश में अपनी दिवंगत पत्नी की दहेज हत्या के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत दे दी। यह एक अल्पकालिक विवाह था, जहां एक साल बाद पत्नी ने आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। बाद में उसके परिवार ने पति एवं ससुराल वालों को दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्या के मामले में फंसा दिया। यह हवाला देते हुए कि दहेज उत्पीड़न के संबंध में पत्नी के परिवार द्वारा लगाए गए आरोप अस्पष्ट और सर्वव्यापी प्रकृति के थे, ट्रायल कोर्ट ने इस स्तर पर मामले की योग्यता पर टिप्पणी किए बिना पति को जमानत दे दी।
क्या है पूरा मामला?
कपल की शादी जुलाई 2021 में हुई थी। दुर्भाग्य से पत्नी की अक्टूबर 2022 में अपने वैवाहिक घर में आत्महत्या से मृत्यु हो गई। अगले ही दिन पत्नी के भाई ने थाना-तालग्राम, जिला-कन्नौज में धारा 498A, 304B IPC और धारा 3/4 दहेज निषेध अधिनियम के तहत मृतक के पति और उसके परिवार के चार अन्य सदस्यों के खिलाफ FIR दर्ज कराई। इसके बाद पति को गिरफ्तार कर लिया गया। दिसंबर 2022 में पुलिस ने जांच पूरी कर पति और उसकी मां का नाम भी शामिल करते हुए चार्जशीट दाखिल की। परिवार के अन्य तीन सदस्यों के नाम चार्जशीट से हटा दिए गए। पति अक्टूबर 2022 से जेल में है।
पति का तर्क
पति का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील आदर्श मिश्रा, वकील शैलेन्द्र सिंह और वकील आशीष चौरसिया के अनुसार, मृतक पत्नी एक गुस्सैल महिला थी। उसने फांसी लगाकर आत्महत्या करने का चरम कदम उठाया है। मृतक की मौत आत्महत्या से हुई मौत है, जो उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट है। दहेज उत्पीड़न के आरोपों के संबंध में पति के वकीलों ने तर्क दिया कि FIR में बोलेरो कार की अतिरिक्त मांग के कारण मृतिका पर बार-बार शारीरिक और मानसिक क्रूरता करने का आरोप लगाया गया है। वकीलों ने कहा कि पति के परिवार के पास शादी से एक साल पहले से ही वही कार थी और इस प्रकार ये आरोप केवल रंग देने के लिए FIR में लगाए गए थे। दलीलें इस बात पर भी टिकी रहीं कि पति और ससुराल वालों द्वारा कैसे, कब और किस तरह के दहेज की मांग की गई, इसका कोई डिटेल्स नहीं दिया गया।
पत्नी के परिवार का तर्क
पति के वकीलों द्वारा दी गई दलीलों के विपरीत राज्य के अतिरिक्त सरकारी वकील अपुल मिश्रा और पहले मुखबिर का प्रतिनिधित्व करने वाले विद्वान वकील ने जमानत की प्रार्थना का जोरदार विरोध किया। उन्होंने कहा कि चूंकि आवेदक मृतिका का पति है, एक नामित और आरोपपत्रित आरोपी है, इसलिए, वह इस न्यायालय द्वारा किसी भी रियायत का पात्र नहीं है। मिश्रा ने आत्महत्या के समय पर जोर दिया, जो शादी के 1 साल और 2 महीने के भीतर हुआ। उन्होंने ‘उसके शरीर पर कुछ निश्चित मृत्यु-पूर्व चोटों’ की ओर भी इशारा किया, जो इस स्तर तक अस्पष्टीकृत रहीं।
उन्होंने कहा कि मृतक की मृत्यु उसके वैवाहिक घर में और शादी के 7 साल के भीतर हुई है। ऐसे में यह मामला दहेज हत्या ही है। इसलिए, साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 और 113B में निहित प्रावधानों के आधार पर आवेदक पर न केवल घटना के तरीके बल्कि अपनी बेगुनाही को भी समझाने का बोझ है। हालांकि, आवेदक उक्त बोझ का निर्वहन करने में बुरी तरह विफल रहा है। उपरोक्त आधार पर यह तर्क दिया गया है कि इस अदालत द्वारा आवेदक के पक्ष में कोई सहानुभूति नहीं दिखाई जानी चाहिए।
ट्रायल कोर्ट, उत्तर प्रदेश
जज विनय ने कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत सभी साक्ष्यों का विश्लेषण किया। इसको बाद कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड, सबूत, अपराध की प्रकृति और गंभीरता, लगाए गए आरोप और अभियुक्तों की मिलीभगत के अवलोकन के साथ-साथ इस तथ्य पर कि मृतक के शरीर का शव परीक्षण करने वाले ऑटोप्सी सर्जन की राय के अनुसार, मृतक की मृत्यु हुई है। प्रथमदृष्टया यह आत्महत्या की मौत है, क्योंकि मृतिका ने फांसी लगाकर खुदकुशी की थी।
अदालत ने आगे कहा कि यह सच है कि मृतक के शरीर पर कुछ चोटें पाई गईं, लेकिन उक्त चोटें न तो गंभीर हैं। साथ ही न ही घातक हैं और न ही उन्हें मृतक की मृत्यु का कारण कहा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि FIR में बोलेरो की मांग और अतिरिक्त दहेज की मांग पूरी न होने पर मृतक पर शारीरिक और मानसिक क्रूरता करने के आरोप अस्पष्ट और बेबुनियाद हैं। क्योंकि भौतिक डिटेल्स समान नहीं हैं। इसके अलावा न तो FIR में उल्लेख किया गया है और न ही CrPC की धारा 161 के तहत दर्ज किए गए पहले मुखबिर के बयान में दर्ज है।
10 महीने से जेल में बंद पति को जमानत देते हुए ट्रायल कोर्ट ने आदेश दिया कि उपरोक्त और कहकशां कौसर @सोनम (सुप्रा) मामले में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून को ध्यान में रखते हुए, उक्त आरोप, आवेदक के स्वच्छ पूर्ववृत्त, अवधि, इस स्तर पर इस न्यायालय द्वारा नजरअंदाज किए जाने योग्य हैं। कारावास की सजा सुनाई गई, पुलिस की रिपोर्ट धारा 173(2) CrPC के संदर्भ में है। पहले ही प्रस्तुत किया जा चुका है, इसलिए, आवेदक के खिलाफ अभियोजन पक्ष द्वारा भरोसा किए जाने के लिए मांगे गए सभी साक्ष्य अब समकालिक हो गए हैं।
हालांकि, उपरोक्त के बावजूद, न तो विद्वान A.G.A. न ही पहले मुखबिर के विद्वान वकील रिकॉर्ड से ऐसी किसी परिस्थिति का संकेत दे सके, जिसके चलते मुकदमे के लंबित रहने के दौरान आवेदक की हिरासत में गिरफ्तारी की आवश्यकता हो। इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने पति को जमानत दे दी।
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