पति की मृत्यु के बाद महिलाओं के लिए भरण-पोषण के मामले मुश्किल हो सकते हैं। यही कारण है कि सभी महिलाओं को शादी के अस्तित्व के दौरान आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता है, खासकर जब उनके बच्चे नहीं होते हैं।
बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने जुलाई 2022 के अपने एक आदेश में फैसला सुनाया कि विधवा बहू को पति के घरवालों यानी ससुराल या उसके किसी भी रिश्तेदारों से मुआवजे का दावा करने का अधिकार नहीं है। यह शख्स की दूसरी शादी थी। उसकी वैधता को उसके परिवार ने भी चुनौती दी थी।
क्या है पूरा मामला?
महाराष्ट्र के राज्य राजस्व विभाग में एक तलाथी (सरकारी अधिकारी) के रूप में काम करने वाले व्यक्ति की पहली शादी 2008 में हुई थी। कपल की तलाक की याचिका कई वर्षों से एक फैमिली कोर्ट में लंबित थी।
फिर उस व्यक्ति ने कोर्ट से आधिकारिक तलाक के बिना 2016 में दोबारा शादी कर ली। हालांकि, पुनर्विवाह के बाद सितंबर 2017 में उनका तलाक हो गया। फिर शख्स की मौत के बाद, दूसरी पत्नी ने अपने ससुराल वालों को अपने निर्वाह के लिए भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश देने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया।
दूसरी पत्नी का तर्क
विधवा बहू की ओर से पेश वकील मयूरी कस्तूरकर ने कहा कि पति की मौत के बाद ससुराल वालों ने कथित तौर पर महिला को अपने घर से बाहर निकाल दिया। पत्नी ने यह भी तर्क दिया कि सास ने नवंबर 2016 में अपनी बेटी के पति को जमीन का एक टुकड़ा बेच दिया था। महिला खुद को बनाए रखने में असमर्थ थी, क्योंकि उसके पति की संपत्ति उसके ससुराल वालों के हाथों में थी।
ससुराल पक्ष की दलील
वहीं, दूसरी तरफ ससुराल पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील संदीप राजेभोसले ने तर्क दिया कि पति की पहली शादी के निर्वाह के दौरान दूसरी महिला की शादी कानूनी रूप से मान्य नहीं थी।
मजिस्ट्रियल कोर्ट, औरंगाबाद
10 नवंबर, 2021 को औरंगाबाद जिले के सिल्लोड की मजिस्ट्रेट अदालत ने “विधवा बहू” द्वारा भरण-पोषण की मांग के एक आवेदन के जवाब में सास, विवाहित ननद और उनके पति के खिलाफ नोटिस जारी कर कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया।
बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच
बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच की जस्टिस विभा कंकनवाड़ी ने निचली अदालत में तीनों ससुराल वालों के खिलाफ चल रही पूरी कार्यवाही को रद्द कर दिया। जज ने अपने अवलोकन के समर्थन में पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट और आंध्र प्रदेश हाई के दो आदेशों पर भरोसा किया।
धारा 125 सीआरपीसी के तहत रखरखाव की सीमाओं का हवाला देते हुए जज ने कहा कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 125 विधवा बहू को अपने ससुर, सास या पति के किसी रिश्तेदार से भरण-पोषण मांगने का अधिकार नहीं देती।
कोर्ट ने आगे कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग एक ऐसे व्यक्ति द्वारा की जा सकती है, जिसने अपनी पत्नी या अपने नाजायज नाबालिग बच्चे, अपने पिता या माता का भरण-पोषण करने से इनकार कर दिया हो।
पति से ससुराल वालों को संपत्ति का ट्रांसफर
हाई कोर्ट ने यह भी देखा कि सास द्वारा अपने दामाद को संपत्ति का लेन-देन उस समय किया गया था जब पति जीवित था और उसने (बेटे ने) लेनदेन पर कभी आपत्ति दर्ज नहीं की।
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