उड़ीसा हाईकोर्ट (Orissa High Court) ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि पत्नी घरेलू हिंसा एक्ट के तहत पति के एक्ट्रा-मैरिटल पार्टनर पर केवल इसलिए मुकदमा नहीं चला सकती, क्योंकि वो उनके घर में रहती थी। कोर्ट ने कहा कि दोनों महिलाएं (पत्नी और एक्ट्रा-मैरिटल पार्टनर) एक्ट की धारा 2 (F) के अनुसार ‘घरेलू संबंध’ साझा नहीं करती हैं, क्योंकि वे केवल एक ही छत के नीचे रहती हैं।
क्या है पूरा मामला?
शिकायतकर्ता ने साल 1996 में एक सुधीर कुमार कारा से शादी की थी। उसकी तरफ से यह आरोप लगाया गया कि उसके ससुराल वालों ने उसके साथ क्रूरता की, क्योंकि उसकी शादी उनकी मर्जी के खिलाफ हुई थी। शिकायतकर्ता ने शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की यातनाओं का हवाला देते हुए कई आरोप लगाए हैं। जहां तक वर्तमान याचिकाकर्ताओं का संबंध है, यह आरोप लगाया गया है कि उसके पति के याचिकाकर्ता संख्या 2 के साथ अवैध संबंध हैं, जो याचिकाकर्ता संख्या 1 से विवाहित है। यह कहते हुए कि उनके खिलाफ घरेलू हिंसा का कोई मामला नहीं बनता है। याचिकाकर्ताओं ने कार्यवाही को रद्द करने की अपील करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पक्षों का तर्क
लाइव लॉ के मुताबिक, एक्ट की धारा 2(f) के अनुसार ‘घरेलू संबंध’ की परिभाषा का उल्लेख करते हुए याचिकाकर्ताओं के लिए ये प्रस्तुत किया गया कि वे किसी भी तरह से शिकायतकर्ता से संबंधित नहीं हैं। दोबारा, उनके खिलाफ कुछ भी दावा नहीं किया गया था। साथ ही अधिनियम की धारा 2 (q) के अनुसार ‘प्रतिवादी’ की परिभाषा का उल्लेख करते हुए, यह तर्क दिया गया था कि याचिकाकर्ताओं को मामले में प्रतिवादी नहीं बनाया जा सकता है।
हालांकि, शिकायतकर्ता-पत्नी की ओर से तर्क दिया गया कि उसके पति के याचिकाकर्ता नंबर 2 के साथ अवैध संबंध थे और दोनों एक साथ एक बिल्डिंग में रहते थे, जिसमें वह भी रहती थी। इसलिए, यह एक ‘शेयर हाउसोल्ड’ बन गया, जो महिला को एक्ट के तहत अभियोजन के लिए उत्तरदायी बनाता है।
हाई कोर्ट
एक्ट के तहत आरोपों को खारिज करते हुए जस्टिस शशिकांत मिश्रा की सिंगल जज पीठ ने कहा कि एकमात्र आरोप ये है कि शिकायतकर्ता के पति का याचिकाकर्ता संख्या 2 के साथ अवैध संबंध था और जहां तक याचिकाकर्ता संख्या 1 (याचिकाकर्ता संख्या 2 के पति) का संबंध है। यह आरोप है कि उसे इस तरह के रिश्ता पर कोई आपत्ति नहीं है। अगर ये तथ्य सही हैं, तो यह भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक अपराध का गठन कर सकता है, लेकिन किसी भी तरह से घरेलू हिंसा एक्ट के तहत याचिकाकर्ताओं को किसी मामले में फंसाने का आधार नहीं माना जा सकता है।
कोर्ट ने सवाल कि क्या किसी व्यक्ति को प्रतिवादी के रूप में जोड़ा जा सकता है, इस बात पर निर्भर करता है कि पीड़ित व्यक्ति के साथ उसका घरेलू संबंध है या नहीं। इसी प्रकार, ‘शेयर हाउसोल्ड’ भी घरेलू संबंधों से संबंधित है। एक्ट की धारा 2(f) में ‘घरेलू संबंध’ को इस प्रकार परिभाषित किया गया है। “घरेलू संबंध” का अर्थ दो व्यक्तियों के बीच संबंध है, जो किसी भी समय एक साझा घर में एक साथ रहते हैं या रह चुके हैं, जब वे रक्त संबंध, विवाह, या विवाह की प्रकृति, गोद लेने या संयुक्त परिवार के रूप में एक साथ रहने वाले परिवार के सदस्य के रिश्ते के माध्यम से संबंधित होते हैं।
अदालत ने आगे कहा कि जब तक पार्टियों के बीच घरेलू संबंध नहीं है, धारा 2 (s) के अनुसार एक ही घर में निवास मात्र ‘साझा घर’ की परिभाषा के दायरे में नहीं आएगा। न्यायालय ने आगे श्यामलाल देवड़ा और अन्य बनाम वी. परिमला में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी का संदर्भ दिया कि बाहरी लोगों सहित कई लोगों को उनके खिलाफ घरेलू हिंसा के किसी विशेष आरोप के बिना अभियोग लगाने की प्रथा बन गई है। ऐसी परिस्थितियों में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि विशिष्ट आरोपों के अभाव में, घरेलू हिंसा का मामला रद्द किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामला एक समान स्तर पर खड़ा है, क्योंकि माना जाता है कि याचिकाकर्ता सगोत्रता, विवाह या विवाह की प्रकृति में संबंध, गोद लेने या संयुक्त परिवार के सदस्यों आदि द्वारा विरोधी पक्ष संख्या से संबंधित नहीं हैं। इस तरह याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया गया। हालांकि, पत्नी को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई अन्य कानूनी उपाय करने की स्वतंत्रता दी गई, अगर उनके खिलाफ उनकी कोई शिकायत है।
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