बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि महिला को अपने अलग रह रहे पति के घर की बिक्री में बाधा डालने का अधिकार नहीं है, अगर वह उसे समान सुविधाओं के साथ किराए का आवास देने को तैयार है। लीगल वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश में दखल देने से इनकार करते हुए उपरोक्त टिप्पणी की, जिसमें बकाया कर्ज चुकाने के लिए पति को फ्लैट बेचने की इजाजत दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने पत्नी को वैवाहिक घर से बाहर जाने और उपयुक्त दो बेडरूम वाला किराए के फ्लैट चुनने का निर्देश दिया था। यदि ऐसा नहीं होता है तो पत्नी को प्रति माह 50,000 रुपए देने के निर्देश दिए गए थे।
क्या है पूरा मामला?
लाइव लॉ के मुताबिक, कपल ने 1996 में शादी की थी और उनकी 24 और 16 साल की दो बेटियां हैं। पति ने 2021 में फैमिली कोर्ट में लंबित अपनी तलाक याचिका में फ्लैट बेचने की अर्जी दाखिल की। फैमिली कोर्ट ने आवेदन को स्वीकार कर लिया, जिसके बाद पत्नी ने हाईकोर्ट के समक्ष आदेश को चुनौती दी। वकील मोहित भारद्वाज के माध्यम से पति ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उसने फ्लैट के लिए ब्याज समेत 1.15 करोड़ रूपये का भुगतान किया।
हालांकि, कोरोना प्रतिबंधों के कारण वह ब्रिटेन वापस नहीं जा पाया और उसे भारत में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। उसने कहा कि अब वह EMI का भुगतान करने और दो घरों का खर्च वहन करने में असमर्थ हैं। उसने इसके बदले किराया देने की पेशकश की। उसके वकील ने कहा कि अगर बैंक वसूली की कार्यवाही शुरू करता है तो उसकी वित्तीय विश्वसनीयता और क्रेडिट रिकॉर्ड को नुकसान होगा।
अजिंक्य उदाने के निर्देश पर पत्नी के वकील अभिजीत सरवटे ने दलील दी कि पति ने शेयर खरीदने के लिए फ्लैट गिरवी रखा था। यह आरोप लगाया गया कि उसका मुख्य उद्देश्य पत्नी को उसके वैवाहिक घर से बेदखल करना है। वकील ने इस बात से इनकार किया कि उसके पति को किसी भी वित्तीय समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
हाई कोर्ट का आदेश
कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश पर दोनों पक्षों के संतुलित अधिकारों का अवलोकन किया। जस्टिस अमित बोरकर ने कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि पत्नी को पति के समान जीवन शैली जीने का अधिकार है। हालांकि, पति के स्वामित्व वाले फ्लैट की बिक्री में बाधा डालने का उसे कोई अधिकार नहीं है, यदि पति आसपास के समान वैकल्पिक आवास देता है। यदि पति समान लाभ वाले वैकल्पिक किराए का फ्लैट देने के लिए तैयार है तो वह इसे इस आधार पर मना नहीं कर सकती है कि वह मौजूदा फ्लैट में रहने की आदी है।
पत्नी के बेदखली की आशंका के बारे में अदालत ने कहा कि पति पहले ही एक वचन दे चुका है कि वह मासिक आधार पर वैकल्पिक परिसर का किराया देगा। इस तर्क पर कि फैमिली कोर्ट ने पति को उसकी मांग से अधिक दिया, बेंच ने राहत को संशोधित किया, इसने पति को परिसर बेचने की अनुमति दी और उसे फिक्स्ड डिपॉजिट में राष्ट्रीयकृत बैंक में 2 करोड़ रूपये रखने का निर्देश दिया, जो कि फैमिली की अनुमति के बिना समाप्त नहीं किया जाएगा।
अदालत ने देखा कि रिकॉर्ड पर मौजूद डॉक्यूमेंट्स से पता चलता है कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के अलग होने के बाद भी पति ने सूट परिसर की EMI का भुगतान करना जारी रखा। इससे यह भी पता चलता है कि पति का इरादा याचिकाकर्ता को वाद परिसर से बेदखल करना नहीं है, बल्कि उसे वैकल्पिक आवास में शिफ्ट करना है, जो उसके लिए उपयुक्त है। 13 जनवरी 2023 का उपक्रम पत्नी के अधिकारों का ख्याल रखता है।
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