सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 11 मार्च को एक पति द्वारा दायर एक याचिका में नोटिस जारी किया, जिसमें पति ने कथित तौर पर इस तथ्य को छिपाने के लिए अपनी पत्नी के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज करने की मांग की गई थी कि वह शारीरिक रूप से शादी के समय महिला नहीं है। व्यक्ति के अनुसार, उसकी ‘पत्नी’ ने कथित तौर पर इस तथ्य को छुपाया कि वह शारीरिक रूप से शादी के समय महिला नहीं थी।
क्या है पूरा मामला?
लाइवलॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ता के अनुसार उसने जुलाई 2016 में प्रतिवादी पत्नी से शादी की और शादी के बाद उसने कुछ दिनों तक यौन संबंध नहीं बनाए और उसके बाद वैवाहिक घर छोड़ दिया। याचिकाकर्ता ने बताया कि जब उसने यौन संबंध बनाने की कोशिश की तो उसने पाया कि योनि के खुलने की कोई जगह नहीं थी और उसकी पत्नी को किसी छोटे बच्चे की तरह एक लिंग है। इसके बाद वह उसे मेडिकल चेक-अप के लिए ले गया, जहां यह पता चला कि उसे ‘इम्परफ़ोरेट हाइमन’ नामक एक मेडिकल समस्या है। इस एक मेडिकल कंडीशन है, जिसमें हाइमन योनि को कवर करता है।
याचिकाकर्ता के अनुसार, पत्नी ने वैवाहिक घर छोड़ दिया, और फिर से एक मेडिकल चेक-अप के लिए गई, जहां यह पाया गया कि उसे ‘कॉन्जेनिटल एड्रेनल हाइपरप्लासिया’ (CAH) है। (एक मेडिकल कंडीशन जिसमें महिला का भगशेफ बड़ा हो गया है और जननांग तीन साल के छोटे बच्चे (पुरुष) की तरह दिखते हैं।)
पति का तर्क
याचिकाकर्ता ने जुलाई 2016 में प्रतिवादी पत्नी से शादी की थी। पति ने तर्क दिया कि उसकी पत्नी पेनिस और एक अभेद्य हाइमन (Imperforate Hymen) की उपस्थिति के कारण महिला नहीं है और इस तथ्य को छुपाना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी का अपराध है।
याचिकाकर्ता-पति के अनुसार, उसकी पत्नी का जन्मजात हाइपरप्लासिया का इलाज किया गया था, जो एक मेडिकल स्थिति है जिसमें महिला का भगशेफ (clitoris) बड़ा हो जाता है और जननांग एक पुरुष बच्चे की तरह दिखते हैं। हालांकि, वही यह तथ्य उससे छुपाया गया था, जो उसकी पत्नी और उसके पिता द्वारा उसे धोखा देने के बराबर है।
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि उसके ससुर अन्य लोगों के साथ जबरन उसके घर में घुस गए और उसे अभद्र भाषा में गाली दी और पत्नी को ससुराल में रखने से इनकार करने पर जान से मारने की धमकी दी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 12(1)(ए) के तहत अपनी पत्नी के वैवाहिक सुख न देने में असमर्थता के कारण विवाह को अमान्य घोषित करने के लिए एक आवेदन दायर किया। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि जनवरी 2017 में पत्नी ने प्रतिशोध के तौर पर उसके खिलाफ धारा 498ए आईपीसी के तहत क्रूरता का प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
निचली अदालत का आदेश
ट्रायल कोर्ट ने उनके आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि हलफनामे के साथ मेडिकल साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराए गए हैं। ट्रायल कोर्ट ने पत्नी को विभिन्न अवसरों पर मेडिकल जांच कराने का निर्देश दिया, लेकिन वह उक्त आदेश का पालन करने में विफल रही। पति द्वारा उपलब्ध कराए गए मेडिकल साक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, ट्रायल कोर्ट ने माना कि पत्नी और उसके पिता के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है और भारतीय दंड संहिता की धारा 420 सहपठित धारा 420 के तहत संज्ञान लिया। इस आदेश को हाई कोर्ट ने आक्षेपित आदेश के माध्यम से अपास्त कर दिया था।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पति की शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि केवल मौखिक साक्ष्य के आधार पर और बिना किसी मेडिकल साक्ष्य के भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 420 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। हाई कोर्ट ने कहा था कि ग्वालियर के एक अस्पताल में जांच के बाद पत्नी के खिलाफ मेडिकल रिपोर्ट में कुछ भी प्रतिकूल नहीं निकला।
सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की खंडपीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका में नोटिस जारी किया, जिसमें ट्रायल कोर्ट के आदेश को पत्नी और उसके पिता के खिलाफ धोखाधड़ी के अपराध में संज्ञान लेते हुए खारिज कर दिया गया था। बेंच ने पति की इस दलील पर गौर किया कि प्रतिवादी की मेडिकल हिस्ट्री लिंग + इम्परफोरेट हाइमन दिखाता है, इसलिए उसकी पत्नी महिला नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील ने अन्य बातों के साथ-साथ पेज 39 पर हमारा ध्यान आकर्षित किया है कि प्रतिवादी का मेडिकल इतिहास “लिंग+इम्परफोरेट हाइमन” दिखाता है, इसलिए प्रतिवादी एक महिला नहीं है।
इस प्रकार पीठ ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका में नोटिस जारी किया, जिसमें ट्रायल कोर्ट के आदेश को पत्नी और उसके पिता के खिलाफ धोखाधड़ी के अपराध में संज्ञान लेते हुए खारिज कर दिया गया था।
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