केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में अपने एक आदेश में कहा है कि पति की चेतावनी को अनदेखा करते हुए एक पत्नी द्वारा किसी दूसरे पुरुष को गुप्त फोन कॉल करना वैवाहिक क्रूरता के समान है। जस्टिस कौसर एडप्पागथ (Justice Kauser Edappagth) ने एक कपल को तलाक की डिक्री मंजूर करते हुए अपने आदेश में कहा कि जब तक वैवाहिक जीवन को बहाल नहीं किया जाता है, तब तक केवल समझौता करना क्रूरता की माफी के समान नहीं होगा। अदालत ने कहा कि पति की चेतावनी की अवहेलना करते हुए पत्नी द्वारा किसी अन्य पुरुष को बार-बार अवसर देखकर फोन कॉल करना, वह भी देर रात में वैवाहिक क्रूरता के समान है।
क्या है पूरा मामला?
– कपल की शादी मई 2006 में थोडुपुझा स्थित श्रीकृष्णस्वामी मंदिर में हुआ था। एक साल बाद नवंबर 2007 में एक बेटी का जन्म हुआ।
– शादी के तुरंत बाद उनके बीच वैवाहिक कलह पैदा हो गई जो समय बीतने के साथ तेज होती गई। इसके लिए दोनों ने एक दूसरे पर आरोप लगाया।
– पति ने दो मौकों (2008 और 2010) में तलाक के लिए याचिका दायर की और पत्नी ने सोने के गहने और पैसे (2011) की वापसी के लिए याचिका दायर की। हालांकि, परिवार के सदस्यों और शुभचिंतकों के हस्तक्षेप के बाद उन याचिकाओं को उनके द्वारा वापस ले लिया गया था। वे मार्च 2012 से फिर से साथ रहने लगे।
– 2015 में पत्नी ने अपने पति पर मारपीट और दहेज की मांग करने का आरोप लगाया, जिसके परिणामस्वरूप पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए और 34 के तहत केस दर्ज किया गया। इसके बाद 2013 में पति ने क्रूरता और एडल्ट्री के आधार पर शादी भंग करने की अर्जी दी। 2014 में पति ने उसे नाबालिग बेटी के अभिभावक के रूप में नियुक्त करने के लिए अभिभावक और वार्ड अधिनियम, 1890 के तहत मामला भी दर्ज किया।
पति का तर्क
पति के अनुसार, शादी की शुरुआत से ही पत्नी ने उसके जीवन को नर्क बनाकर कई तरह अनैतिकता की है। पति की तरफ से यह भी आरोप लगाया गया कि उसकी पत्नी का शादी से पहले भी दूसरे प्रतिवादी के साथ अवैध संबंध था, जिसने उसे शादी के बाद भी जारी रखा। पति की ओर से पेश हुए वकील टी.एम.रमन कार्था ने आगे कहा कि बीएसएनएल की तरफ से पेश सीडी के प्रिंटआउट का अवलोकन करने से पता चलता है कि पत्नी और दूसरे प्रतिवादी के बीच लगातार फोन कॉल हुई हैं, जो उनके बीच एक अपवित्र संबंध का सुझाव दे रही हैं।
पत्नी का बचाव
पत्नी की ओर से पेश वकील एम.बी.संदीप ने पति के सभी दावों का खंडन किया और तर्क दिया कि वह कभी-कभार ही किसी विशेष अवसर पर दूसरे प्रतिवादी को फोन करती थी। केरल हाई कोर्ट फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली पति की अपील पर फैसला सुना रहा था। पति ने पहले एडल्ट्री और क्रूरता के आधार पर शादी को भंग करने की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन उसके आवेदन को खारिज कर दिया गया था, जिसके बाद उसने हाई कोर्ट का रूख किया।
केरल हाई कोर्ट का आदेश
केरल हाई कोर्ट ने कहा कि केवल इस कारण से कि पत्नी दूसरे प्रतिवादी को नियमित फोन कॉल करती थी, इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है कि उनका रिश्ता अवैध है और उनके बीच गलत संबंध थे। अदालत ने आगे यह भी कहा गया कि एडल्ट्री के आरोप को प्रमाणित करने के लिए उच्च स्तर की संभावना होनी चाहिए। संभावनाओं की अधिकता के बावजूद भी पति द्वारा पेश किए गए सबूत एडल्ट्री को साबित करने के लिए अपर्याप्त पाए गए हैं।
हालांकि हाई कोर्ट ने कहा कि यह देखा गया कि ऐसे कई उदाहरण मिले है, जहां पत्नी ने देर रात भी फोन कॉल किए हैं। उदाहरण के लिए, 28/2/2013 को उसने 10 कॉल किए, जिनमें से 5 मिस्ड कॉल रात 10:40 से रात 10:55 के बीच किए गए थे। कोर्ट ने कहा कि यद्यपि उक्त साक्ष्य पत्नी की ओर से एडस्ट्री का अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है, प्रासंगिक सवाल यह है कि क्या इस तरह की कॉल करना मानसिक क्रूरता का गठन करेगा?
अदालत ने आगे कहा कि शादी की शुरुआत से ही वैवाहिक संबंध सौहार्दपूर्ण नहीं थे। वास्तव में वे तीन बार अलग हुए और फिर से मिले और कई बार मध्यस्थता और सुलह से गुजरना पड़ा। पार्टियों ने अंततः फिर से साथ रहने का फैसला किया था। ऐसी परिस्थिति में पत्नी को अपने व्यवहार के प्रति अधिक सतर्क रहना चाहिए था।
अदालत ने कहा कि पति के अनुसार उसकी चेतावनी के बावजूद उसकी पत्नी ने दूसरे प्रतिवादी से फोन पर बातचीत करना जारी रखा। जो यह दर्शाता है कि पति द्वारा दूसरे प्रतिवादी के साथ उसकी फोन पर हुई बातचीत के बारे में पत्नी से सवाल करने के बाद भी और यह महसूस करने के बाद भी कि उसके पति को यह सब पसंद नहीं है, उसने दूसरे प्रतिवादी के साथ लगभग हर दिन कॉल पर बातचीत करना जारी रखा। इतना ही नहीं एक ही दिन में कई-कई बार टेलीफोन पर बातचीत की गई।
अदालत ने कहा कि किसी भी तरह से यह विवाद में नहीं है कि समझौते का उल्लंघन हुआ है। सवाल यह नहीं है कि उल्लंघन किसने किया है। सवाल यह है कि क्या दोनों पक्षों द्वारा समझौते का पालन किया गया है और क्या वैवाहिक संबंधों को सामान्य तरीके से फिर से शुरू किया गया था? कोर्ट ने कहा कि जब तक वैवाहिक जीवन को फिर से सामान्य तरीके से शुरू नहीं किया जाता है, तब तक केवल समझौता करना क्रूरता की माफी नहीं होगी।
अदालत ने आखिरी में फैसला सुनाते हुए आगे कहा कि समझौते के बाद पति और पत्नी के बीच दाम्पत्य जीवन को उसकी वास्तविक भावना में फिर से शुरू करने का संकेत देने के लिए रिकॉर्ड पर कोई भी सामग्री नहीं थी। ऐसी परिस्थितियों में केरल हाई कोर्ट ने कपल को तलाक देने के लिए इसे उपयुक्त मामला पाया।
ये भी पढ़ें:
लंबे समय तक अलग रहने के बावजूद अगर पति तलाक के लिए सहमति से इनकार करता है, तो इसे मानसिक क्रूरता माना जा सकता है: केरल HC
सक्षम पति को भरण-पोषण देने वाली पत्नी “आलस्य” को बढ़ावा देगी: केरल हाई कोर्ट
ARTICLE IN ENGLISH:
READ JUDGEMENT | Wife Making Discreet Phone Calls Frequently With Another Man Amounts to Matrimonial Cruelty: Kerala High Court
पुरुषों के लिए समान अधिकारों के बारे में ब्लॉगिंग करना या जेंडर पक्षपाती कानूनों के बारे में लिखना अक्सर विवादास्पद माना जाता है, क्योंकि कई लोग इसे महिला विरोधी मानते हैं। इस वजह है कि अधिकांश ब्रांड हमारे जैसे पोर्टल पर विज्ञापन देने से कतराते हैं।
इसलिए, हम दानदाताओं के रूप में आपके समर्थन की आशा करते हैं जो हमारे काम को समझते हैं और इस उद्देश्य को फैलाने के इस प्रयास में भागीदार बनने के इच्छुक हैं। मीडिया में एक तरफा जेंडर पक्षपाती नेगेटिव का मुकाबला करने के लिए हमारे काम का समर्थन करें।
हमें तत्काल दान करने के लिए, ऊपर "अभी दान करें" बटन पर क्लिक करें। बैंक ट्रांसफर के माध्यम से दान के संबंध में जानकारी के लिए यहां क्लिक करें। click here.