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Home हिंदी कानून क्या कहता है

ट्रांसजेंडर शख्स, जो सर्जरी कराकर महिला बनी है वह घरेलू हिंसा एक्ट के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है: बॉम्बे HC

Team VFMI by Team VFMI
April 7, 2023
in कानून क्या कहता है, हिंदी
0
voiceformenindia.com

Bombay High Court Comes To Aid Of Woman Stuck With Ex-Husband’s Name Wrongly Added To Child’s Birth Certificate

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बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने पिछले दिनों एक मामले की सुनवाई के दौरान माना था कि एक ट्रांसजेंडर महिला, जिसने सेक्स री-असाइनमेंट सर्जरी कराई है, घरेलू हिंसा एक्ट, 2005 (Domestic Violence Act, 2005) के तहत एक “पीड़ित व्यक्ति” हो सकती है और उसे घरेलू हिंसा के मामले में अंतरिम भरण-पोषण की मांग करने का अधिकार है।

क्या है पूरा मामला?

जस्टिस अमित बोरकर ने 16 मार्च को एक पुरुष की याचिका को खारिज कर दिया (जिसमें उसने अपनी पत्नी, जो कि एक ट्रांस-महिला थी) को दिए गए भरण-पोषण को चुनौती दी गई थी। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, याचिकाकर्ता पति ने प्रतिवादी (जो कि एक ट्रांसजेंडर महिला था) से शादी किया था, जिसकी 2016 में सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी हुई थी। कपल ने जुलाई 2016 में शादी की थी। हालांकि, मतभेदों के बाद पत्नी ने घरेलू हिंसा एक्ट, 2005 के तहत मामला दायर किया और अंतरिम भरण-पोषण की मांग की। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने उसे भरण-पोषण दिया और अतिरिक्त सत्र जज ने अपील में इसे बरकरार रखा। JFMC अदालत ने उसे मासिक रखरखाव के रूप में 12,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था।

याचिकाकर्ता पति ने तर्क दिया कि प्रतिवादी ‘पीड़ित व्यक्ति’ की परिभाषा में नहीं आता है, क्योंकि इसमें केवल घरेलू संबंधों में महिलाएं शामिल हैं। उसने कहा कि प्रतिवादी के पास ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 7 के तहत प्रमाण पत्र नहीं है और इसलिए उसे डीवी एक्ट के तहत एक महिला के रूप में नहीं माना जा सकता है। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के अधिकार को मान्यता दी है, जिसने अपनी जेंडर आइडेंटिटी के अनुसार अपने जेंडर को बदल दिया है, उसे ‌रि-एसाइन किए गए जेंडर के आधार पर जेंडर पहचान को मान्यता दी जाए।

हाई कोर्ट

हाई कोर्ट के सामने सवाल यह था कि क्या सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी कराने वाली एक ट्रांसजेंडर महिला को डीवी एक्ट की धारा 2 (A) के तहत “पीड़ित व्यक्ति” माना जा सकता है। अदालत ने कहा कि वह ट्रांसजेंडर जिसने जेंडर बदलने के लिए सर्जरी की है, उसे घरेलू हिंसा एक्ट, 2005 की धारा 2 (A) के अर्थ के तहत एक पीड़ित व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसलिए, यह माना जाता है कि एक व्यक्ति जिसने महिलाओं के रूप में खुद की पहचान के ‌लिए अपने ‌अधिकारों का प्रयोग किया है, उसे तय करने के अपने अधिकार का प्रयोग किया है, वह घरेलू हिंसा एक्ट, 2005 की धारा 2 (A) के अर्थ में एक पीड़ित व्यक्ति है।

लाइव लॉ के मुताबिक, अदालत ने कहा कि घरेलू हिंसा एक्ट, 2005 से महिलाओं की सुरक्षा की धारा 2 (A) के तहत ‘पीड़ित व्यक्ति’ शब्द की व्यापक व्याख्या की जानी चाहिए, क्योंकि एक्ट का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाना है। कोर्ट ने आगे कहा कि डीवी एक्ट की धारा 2(F) जो घरेलू संबंध को परिभाषित करती है, जेंडर न्यूट्रल है। अदालत ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) एक्ट की धारा 2 (K) ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को परिभाषित करती है, भले ही उनकी सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी हुई हो या नहीं। एक्ट की धारा 7 एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को सक्षम बनाती है, जिसने अपना जेंडर बदलने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दायर करने के लिए सर्जरी की है।

अदालत ने कहा कि “महिला” शब्द डीवी एक्ट की धारा 2 (A) के आयाम को नियंत्रित करता है। अदालत ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति जो सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी से गुजरे हैं, वे अपनी पसंद के लिंग के हकदार हैं। कोर्ट ने कहा कि डीवी एक्ट का मकसद घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को प्रभावी सुरक्षा मुहैया कराना है। इस प्रकार, पीड़ित व्यक्तियों की परिभाषा को व्यापक संभव शब्दों में व्याख्या करने की आवश्यकता है। अदालत ने कहा कि धारा 2 (A) में महिला शब्द अब महिलाओं और पुरुषों की बाइनरी तक सीमित नहीं है और इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी शामिल हैं, जिनकी सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी हुई है। इसके साथ ही पति की याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस बोरकर ने उन्हें चार सप्ताह के भीतर भरण-पोषण का बकाया भुगतान करने का निर्देश दिया।

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