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Home हिंदी कानून क्या कहता है

IPC की धारा 354: मुंबई कोर्ट ने कहा- ‘महिलाओं को भी महिला का शील भंग करने का दोषी ठहराया जा सकता है’

Team VFMI by Team VFMI
December 3, 2022
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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voiceformenindia.com

Indore Court Sentences 19-Year-Old Girl to Ten Years in Prison for Raping a 15-Year-Old Boy (Representation Image)

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मुंबई में एक मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट (Metropolitan Magistrates Court in Mumbai) ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 को अपराधी के लिए जेंडर न्यूट्रल करार देते हुए एक अन्य महिला की शील भंग करने के लिए तीन बच्चों की मां को दोषी ठहराते हुए एक साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है।

क्या है पूरा मामला?

लाइव लॉ वेबसाइट के मुताबिक, आरोपी रोवेना भोसले को लंबे समय से चले आ रहे विवाद के कारण 19 सितंबर, 2020 को कई अन्य लोगों के सामने अपनी पड़ोसी के साथ मारपीट करने और इमारत के रास्ते में उसके कपड़ों को फाड़ने के लिए IPC की धारा 323 और 354 के तहत दोषी ठहराया गया था।

अभियोजन पक्ष ने उनके दो पड़ोसियों सहित 6 गवाहों को कोर्ट में पेश किया, जिन्होंने पूरी घटना को देखा था। उनमें से एक ने अदालत को बताया कि पीड़िता को जूते से पीटा गया था और उसके कपड़ों को फाड़ दिया गया था, जिससे वह पूरी तरह से नग्न हो गई थी।

एपीपी ने तर्क दिया कि आरोपी के खिलाफ सभी आरोप साबित हो गए हैं। हालांकि आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि दोनों महिलाएं पड़ोसी हैं, और उसका शील भंग करने का कोई इरादा नहीं था। यह धारा एक महिला पर लागू नहीं होती है। अभियोजन पक्ष का कहना था कि आरोपी अपनी मां और पीड़िता की नजदीकियों से जलती थी। पीड़िता दो बच्चों की मां है।

मुंबई कोर्ट

मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट मनोज वसंतराव चव्हाण ने कहा कि इसलिए IPC की धारा 354, सभी व्यक्तियों पर समानता का संचालन करती है, चाहे वह पुरुष हो या महिला और यह नहीं कहा जा सकता है कि इस धारा के तहत महिला को किसी भी सजा से छूट दी गई है। कोर्ट ने रेखांकित किया कि IPC की धारा 354 ”यौन अपराध नहीं” है लेकिन ‘आपराधिक बल और हमला’ के अध्याय के अंतर्गत आती है। इसके आवश्यक अवयवों में एक महिला की शील भंग करने के इरादे या ज्ञान के साथ आपराधिक बल का उपयोग करना शामिल है।

शुरूआत में कोर्ट ने पड़ोसियों की गवाही को विश्वसनीय पाया। IPC की धारा 354 के बारे में जज ने कहा कि एक महिला भी किसी अन्य महिला पर उतने ही प्रभावी ढंग से हमला कर सकती है या आपराधिक बल का प्रयोग कर सकती है जितना कि कोई पुरुष कर सकता है। इसके अलावा, एक महिला सिर्फ एक महिला होने के कारण दूसरी महिला की शील भंग करने में ”अक्षम” नहीं है।

कोर्ट ने IPC की धारा 8 के आधार पर 354 IPC में इस्तेमाल किए गए सर्वनाम ‘he’ का अर्थ पुरुष या महिला के रूप में माना। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार यह स्पष्ट है कि IPC की धारा 354 के तहत, एक पुरुष के साथ-साथ एक महिला को भी इस आशय या ज्ञान के साथ किसी महिला पर हमला करने या आपराधिक बल का उपयोग करने के अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता कि इससे महिला की शील भंग हो जाएगी और उसे इस अपराध के लिए सजा दी जा सकती है।

रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता की पिटाई करके और उसकी नाइटी को फाड़कर, आरोपी ने शिकायतकर्ता के निजता के अधिकार का उल्लंघन किया है। अदालत ने माना कि किसी महिला के खिलाफ इस्तेमाल किया गया बल उस समय आपराधिक हो जाता है, जब इसे बिना सहमति के या उसकी इच्छा के विरुद्ध उपयोग किया जाता है।

जज ने पर्याप्त पुष्टि के अभाव में आरोपी के साथ मौखिक दुर्व्यवहार करने के आरोपों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 के तहत आरोपी को लाभ देने से भी इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी को महिला होने के नाते शिकायतकर्ता के प्रति सुरक्षात्मक और संवेदनशील होना चाहिए था। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि आरोपी तीन बच्चों की मां है और सबसे छोटी बच्ची महज 1.5 साल की है, इसलिए उसे धारा के तहत निर्धारित न्यूनतम सजा दी गई है।

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