आप अपने जीवनसाथी को कौन सा SMS भेज रहे हैं, पहले यह सोच लें। यह हमारा नहीं बल्कि स्पष्ट रूप से यह पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) का संदेश है जिसने एक ऐसे व्यक्ति को तलाक दे दिया जिसकी पत्नी ने फर्जी मैसेज और चरित्र हनन का सहारा लिया। यह मामला मार्च 2019 का है।
क्या है पूरा मामला?
– कपल ने फरवरी 1997 में शादी की और उन्हें एक बच्चे का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
– अक्टूबर 2008 में (शादी के 11 साल बाद) दहेज की मांग का आरोप लगाते हुए पत्नी ने FIR दर्ज करा दी।
– पुलिस ने FIR की जांच की, लेकिन उसमें कोई सार नहीं मिला।
– पति ने अन्य बातों के अलावा आरोप लगाया कि पत्नी ने उसके साथ क्रूरता का व्यवहार करना शुरू कर दिया।
– उसने खाना बनाने से मना कर दिया।
– साथ ही उसे अपने माता-पिता से अलग रहने के लिए मजबूर किया।
– सोनीपत फैमिली कोर्ट द्वारा मई 2013 में पारित फैसले और डिक्री को चुनौती देते हुए पति द्वारा हाई कोर्ट में एक अपील दायर की गई।
– बेटे के माध्यम से पति को भेजे गए आपत्तिजनक मैसेज पर कोर्ट ने आपत्ति जताई। मैसेज में लिखा था कि वह अमेरिका में एक अन्य महिला के साथ रह रहा था और उसका एक बच्चा भी है।
कोर्ट का आदेश
– कोर्ट ने पति की इस अपील पर फैसला सुनाया कि ऊपर बताई गई घटनाएं मानसिक प्रताड़ना को जन्म देती हैं।
– पीठ ने खाना बनाने से इनकार करने और पति को अपने माता-पिता से अलग रहने के लिए मजबूर करने को भी क्रूरता माना।
– फैमिली कोर्ट ने हालांकि FIR को ट्रांसफर कर दिया था, लेकिन विरोध याचिका पर फैसला नहीं होने के कारण कोई भी राय देने से परहेज किया था।
– इस प्रकार, एक बार जब न्यायालय द्वारा यह माना लिया गया कि FIR को गलत तरीके से दर्ज किया गया था, तो कोर्ट को यह निर्णय लेने के उद्देश्य से झूठी FIR दर्ज करने के प्रभाव का आकलन करना होगा कि क्या यह इस उद्देश्य के लिए “क्रूरता” का आधार है।
– जस्टिस राकेश कुमार जैन और जस्टिस हरनरेश सिंह गिल की बेंच ने कहा कि इस प्रकार का SMS जो अपीलकर्ता-पति के चरित्र पर हमला करता है, मानसिक क्रूरता का एक घटक भी है जिसके लिए अपीलकर्ता तलाक की डिक्री का हकदार है।
– इस प्रकार, किसी भी एंगल से यह एक उपयुक्त मामला है जिसमें अपीलकर्ता को तलाक की डिक्री प्रदान करने के लिए फैमिली कोर्ट के फैसले और डिक्री को रद्द करने के उद्देश्य से इस न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
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ARTICLE IN ENGLISH:
If FIR Was Falsely Registered, Court Must Access Impact For Deciding Grounds of Cruelty
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