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Home हिंदी कानून क्या कहता है

सुप्रीम कोर्ट ने मासूम बच्ची की हत्या करने वाली महिला को बरी करते हुए कहा, ‘मां के लिए अपने ही बच्चे को मारना अप्राकृतिक है’

Team VFMI by Team VFMI
April 2, 2022
in कानून क्या कहता है, हिंदी
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mensdayout.com

READ ORDER: If Adult Daughter Expects Father To Support Her Education She Also Has To Play Role Of A Daughter

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सालों से कई फैसलों में एक आरोपी महिला को हमेशा संदेह का पूर्ण लाभ मिलता रहा है। इस बीच, सामने आए एक मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मासूम बच्ची की हत्या करने वाली की मां को बरी कर दिया है, क्योंकि उन्हें लगा कि एक मां के लिए अपने ही बच्चे को मारना “अप्राकृतिक (unnatural)” है। यह मामला दिसंबर 2019 का है।

क्या है पूरा मामला?

– अपीलकर्ता (मां) को दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मैटरनिटी  वार्ड में भर्ती कराया गया था और 24 अगस्त, 2007 को एक बच्ची को जन्म दिया।
– 26 अगस्त 2007 को नवजात को मां को सौंप दिया गया था, जिसके बाद बच्चे की गला दबाकर हत्या कर दी गई थी।
– पुलिस के मुताबिक बच्ची होने के कारण खुद मां ने ही अपने नवजात की हत्या कर दी थी।
– डॉक्टर का भी मानना है कि दम घुटने के कारण नवजात का मौत हुआ है।
– 31 अगस्त, 2007 को अपीलकर्ता के खिलाफ उसके नवजात शिशु की मौत मामले में धारा 302 IPC के तहत मामला दर्ज किया गया था।
– अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक कोर्ट नई दिल्ली की अदालत द्वारा IPC की धारा 302 के तहत आरोप के लिए उन पर मुकदमा चलाया गया था।
– अपने बयान में उसने दोषी नहीं ठहराया था और मुकदमे का दावा किया था।
– अपीलार्थी के विरुद्ध आरोप सिद्ध करने के लिए अभियोजन पक्ष ने कुल मिलाकर 23 गवाहों का परीक्षण किया था।
– ट्रायल कोर्ट ने 19 दिसंबर, 2009 के फैसले में पाया कि अभियोजन पक्ष परिस्थितियों का पूरा सबूत साबित करने में सक्षम था और अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित कर दिया कि अपीलकर्ता आरोपी IPC की धारा 302 के तहत अपराध के लिए दोषी था।। कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास और 2000 रुपये जुर्माना अदा करने का आदेश सुनाया।
– दिल्ली हाई कोर्ट ने भी अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा।
– हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट ने महिला को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

जस्टिस मोहन एम शांतनगौदर और जस्टिस आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह बताता हो कि मां ने बच्चे का गला घोंट दिया, क्योंकि नवजात बच्ची है। पति जो एक एक अभियोजन गवाह था वह बाद में मुकर गया। उसने बयान दिया था कि उनके पास पहले से ही एक पुरुष बच्चा था, और वे परिवार को पूरा करने के लिए एक बच्ची चाहते थे।

शीर्ष अदालत ने पाया कि यह सच है कि पोस्टमॉर्टम में डॉक्टर ने कहा है कि मौत दम घुटने के कारण हुई है और गला घोंटने के निशान थे, लेकिन साथ ही अगर रिकॉर्ड पर सबूतों की समग्रता पर विचार किया जाता है, तो मकसद स्थापित नहीं होता है और यह पूरी तरह से अप्राकृतिक है। मां अपने ही बच्चे को कैसे गला घोंटकर मार डालेगी। पीठ ने उसे संदेह का लाभ देते हुए आरोपी को बरी कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ हाई कोर्ट ने बिना किसी आधार के अनुमानों पर दोष सिद्ध किया है। यह काफी अच्छी तरह से तय है कि केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि का आधार, जब तक कि परिस्थितियों की श्रृंखला स्थापित नहीं हो जाती, दोष सिद्धि दर्ज नहीं की जा सकती।

पीठ ने आगे कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से यह स्पष्ट है कि बच्ची को ऑक्सीजन मास्क के साथ इनक्यूबेटर में रखा गया था और उसने अपनी आंखें भी नहीं खोली हैं और वह जन्म के बाद रोई नहीं है। इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने प्राकृतिक मृत्यु की संभावना से इंकार नहीं किया।

हालांकि, डॉक्टर ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में अपनी राय दी है, मौत का कारण श्वासावरोध है, लेकिन रिकॉर्ड पर किसी भी स्पष्ट सबूत के अभाव में, पीठ ने महसूस किया कि धारा 302 IPC के तहत अपराध के लिए अपीलकर्ता को दोषी ठहराना सुरक्षित नहीं है।

शीर्ष अदालत ने नोट किया कि चूंकि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य आरोपी के अपराध को उचित संदेह से परे लाने के लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए हमारा विचार है कि अपीलकर्ता अपने खिलाफ लगाए गए आरोप से बरी होने के लिए संदेह का लाभ पाने का हकदार है।

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ARTICLE IN ENGLISH:

Supreme Court Acquits Woman For Killing New Born As “It Is Unnatural For Mother To Kill Her Own Baby”

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वौइस् फॉर मेंन

VFMI ने पुरुषों के अधिकार और लिंग पक्षपाती कानूनों के बारे में लेख प्रकाशित किए.

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